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रविवार, 7 फ़रवरी 2016

सपना मांगलिक की पांच लघुकथाएँ

सपना मांगलिक

सपना मांगलिक का जन्म 17 फरवरी 1981 को भरतपुर, राजस्थान में हुआ। शिक्षा : एम ए, बी एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट)। संपादन : तुमको न भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह), स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान), बातें अनकही (कहानी संग्रह)। प्रकाशनाधीन : इस पल को जी ले (प्रेरक संग्रह), एक ख्वाब तो तबियत से देखो यारो (प्रेरक संग्रह), बोन्साई (हाइकु संग्रह) एवं पन्नों पर जिन्दगी (कहानी संग्रह)। विशेष : आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। सम्मान : आगमन साहित्य परिषद् द्वारा दुष्यंत सम्मान, एत्मादपुर नगर निगम द्वारा काव्य मंजूषा सम्मान, ज्ञानोदय साहित्य संस्था, कर्नाटक द्वारा ज्ञानोदय साहित्य भूषण २०१४ सम्मान, हिंदी साहित्य सभा आगरा द्वारा शिल्पी शर्मा स्मृति सम्मान सहित कई अन्य सम्मान। सम्प्रति : उपसम्पदिका– आगमन साहित्य पत्रिका। संपर्क : एफ– 659, बिजलीघर के निकट, कमला नगर, आगरा– 282005 (उ. प्र.), दूरभाष– 09548509508, 7599163711, ई-मेल: sapna8manglik@gmail.com।

गूगल सर्च इंजन से साभार
पहनावा

मिसेज वर्मा सोसायटी की सभी नवयुवतियों के आधुनिक पहनावे पर मौका मिलते ही तंज कसना शुरू कर देती थीं। बेचारी लड़कियां और उनकी मांए मिसेज वर्मा के इस व्यवहार से बहुत आहत और शर्मिंदा महसूस करती। मगर मिसेज वर्मा तो आदत से मजबूर थीं। आज भी वह स्वीटी और मिंकू को जींस-टॉप में कालेज जाते देख मुंह बनाते हुए जोर से बडबड़ाइ, "देखो तो कैसे कपडे पहने हैं, फिर लड़कों को दोष देते हैं ? बेहयाई की तो हद कर रखी है इन लड़कियों ने। उन्हह, मैं तो अपनी सुमन को कभी ऐसे कपडे न पहनने दूं। एक मेरी सुमन को तो देखो कितने शालीन कपडे पहनती है। कोई व्यर्थ की हंगामेबाजी नहीं। जितना पूछो उतना ही जवाब देती है। और आजकल की यह लडकियां ...।" बडबडाती हुई मिसेज वर्मा वापस घर के अन्दर साफ़ सफाई करने में व्यस्त हो गयीं। आधुनिक लड़कियां एवं उनके पहनावे को कोसना जारी था। ऐसे ही सफाई करते-करते उनकी नज़र सुमन के कमरे में रखे डस्टबिन पर पड़ी तो मिसेज वर्मा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी- क्योंकि डस्टबिन से झांकता आई पिल का रैपर उन्हें पहनावे और परवरिश का फर्क समझा रहा था।

घुमक्कड़

समीर ने विवाह के एक वर्ष बाद जब अपनी पत्नी स्मिता के साथ अकेले घूमने जाने की इच्छा जताई तो माँ बिगड़ गयी। बोली, "अरे अभी तो पूरा परिवार खाटू श्याम के दर्शन करके आया है और तुम्हारी शादी के तुरंत बाद भी पापाजी सबको वैष्णो देवी के दर्शन कराकर लाये ही थे, अब अलग जाने का फितूर कहाँ से आया। फिर स्मिता की तरफ टेड़ी नजर करते हुए बोलीं, "जरूर इसी महारानी ने तुम्हें उलटी-सीधी पट्टी पढ़ाई होगी। बड़ी घुमक्कड़ लड़की पल्ले पड़ी है हमारे।" स्मिता की आँखों में अपमान के आंसू तैर आये और समीर भी मन मसोस कर ऑफिस निकल गया। कुछ महीनों बाद समीर की बहन नेहा की शादी हुई। नेहा की शादी को दो महीने हो चुके थे। स्मिता ने माँ को दुखी होकर पिताजी से शिकायत करते सुना, "सुनो जी कैसा कंजूस परिवार ढूँढा है आपने मेरी बेटी के लिए। पूरे दो महीने शादी को हो गए हैं और दामाद जी अभी तक नेहा को हनीमून पर नहीं ले गए। कैसे घुट रही होगी मेरी नन्ही सी बेटी घर में पड़े-पड़े।"

चुनावी दंगे

हथोड़ा पार्टी की रैली में फूला पार्टी के नेताओं ने विद्रोह का स्वर उठाया। इतने में हथोड़ा पार्टी के कार्यकर्ता रामनाथ के सर पर फूला पार्टी के कार्यकर्ता मौजीराम ने पत्थर फैंककर मारा, जिससे उसके सर से खून की धारा निकल पड़ी और रामनाथ को तुरंत एम्बुलेंस से अस्पताल पट्टी कराने भेजा गया। एम्बुलेंस के पीछे-पीछे रिपोर्टरों की फ़ौज और टीवी-चैनल के आँखों-देखा-हाल बताने वाले रिपोर्टर भी अपना कैमरा और माइक संभाले नाटकीय अंदाज में लाइव टेलीकास्ट करने पहुँच गए। हथोड़ा पार्टी बढ़ा-चढ़कर फूला पार्टी पर आरोप लगा रही थी। शाम को रामनाथ जब अपने घर से निकल रहा था तो फूला पार्टी के मौजीराम ने उसे आवाज लगाई, "रामू भैया, अकेले ही जिम जाओगे क्या? अरे हमारा हिस्सा भी तो दे दो भैया।" रामनाथ ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ में पांच-सौ के चार नोट रख दिए और दोनों साथ में दारु के ठेके की और चल पड़े।

महिला एकता समिति

महिला एकता समिति की अध्यक्ष अपनी समिति की सदस्याओं के साथ जब तब धरने पर बैठ जाती थी। आखिर यह संस्था और उनकी अध्यक्ष महिलाओं और उनके हितों की रक्षा के लिए मर-मिट जाने को प्रतिबद्ध जो थी। इस बार मामला विधायक की बहु का था, जोकि दहेज़ प्रताड़ना की शिकायत पूरे सबूतों के साथ लेकर महिला एकता समिति की अध्यक्ष से मिलने आई थी। अध्यक्ष ने उसके खिलाफ हुए जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने का आश्वासन भी दिया और विधायक के घर के आगे धरना देने के लिए इकठ्ठा हुईं। विधायक ने अध्यक्ष महोदय को अपने कार्यालय मिलने को बुलाया और करीब आधे घंटे बाद अध्यक्षा ने विधायक जी से हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए विदा ली।.... और बहु को घर का मामला घर में ही निपटाने की सूझबूझ भरी सीख देते हुए धरने का अंत किया।

अपना घर

मीठी माँ–पापा से उसे चित्रकारी प्रतियोगिता में लखनऊ भेजने के जिद कर रही थी। उसके चित्र को स्कूल लेवल प्रतियोगिता में सराहना मिली थी और अब उसे अंतर्राज्यीय प्रतियोगिता के लिए चुना गया है। मगर माँ–पापा हमेशा की तरह उसे डांटते हुए बोले, "जो करना है अपने घर जाकर करना। दो महीने बाद शादी है और इसकी मनमानियां खत्म नहीं हो रही हैं।" मीठी मन में सोच रही थी कि जिस घर में जन्म लिया क्या वहां वह मनमानी नहीं कर सकती? खैर ससुराल ही उसका घर है तो वह अपना ख्वाब ससुराल जाकर ही पूरा कर लेगी। शादी के बाद उसने हर लड़की की तरह साजन के घर और परिवारीजनों को सहज ही अपना लिया। उसने अपने विनम्र एवं जिम्मेदार व्यवहार से सभी ससुराली जनों का दिल जीत लिया। एक दिन प्रेम के लम्हों में उसने पतिदेव को अपनी चित्रकारी के शौक और उसमे अपनी पहचान बनाने के ख्वाब का जिक्र किया। मगर उम्मीद के विपरीत पतिदेव भड़क उठे, "पागल हो क्या? शादी के बाद एक स्त्री का धर्म घर-गृहस्थी संभालना होता है, अगर यह सब ही करना था तो अपने घर में क्यों नहीं किया?" मीठी आँखों में आंसू भर यह सोचती रह गयी कि आखिर उसका अपना घर है कौन-सा?

Sapna Manglik, Agra, U.P.

1 टिप्पणी:

  1. सपना मांगलिक जी की प्रेरक लघुकथाएँ प्रस्तुतीकरण के लिए आभार!

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