पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

सोमवार, 11 सितंबर 2017

हिंदी दिवस पर दो बातें - गुर्रमकोंडा नीरजा

गुर्रमकोंडा नीरजा

डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा पिछले कई वर्षो से द्विभाषी हिंदी पत्रिक 'स्रवंति' की सह-संपादक तथा इंटरनेट ब्लॉग ‘सागरिका’ की लेखक के रूप में हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा के साथ साथ विशेष रूप से तेलुगु साहित्य के विविध पक्षों पर समीक्षात्मक निबंध लिखकर अपनी मातृभाषा तेलुगु की भी सेवा करती रही हैं। सम्प्रति : सहायक आचार्य, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद– 500004, ईमेल : neerajagkonda@gmail.com


पाठकों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए यह कहना ज़रूरी है कि आज हिंदी का वैश्विक महत्त्व विवाद से परे है। अस्मितावादी विमर्शों के दौर में यह भी याद रखने की ज़रुरत है कि ‘हिंदी’ शब्द केवल खड़ी बोली के मानक रूप का वाचक नहीं अपितु अपने व्यापक अर्थ में संपूर्ण भारतीयता का द्योतक है। भाषा के अर्थ में भी आरंभ में यह शब्द सभी भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त होता था लेकिन कालांतर में 5 उपभाषाओं अथवा 20 बोलियों के भाषा-मंडल का द्योतक बन गया। जब 14 सितंबर, 1949 को संविधान ने हिंदी को 'भारत संघ की राजभाषा' का दर्जा प्रदान किया था तो उसी दिन सभी प्रांतों को अपनी-अपनी प्रादेशिक राजभाषा के रूप में अन्य भारतीय भाषाओँ को स्वीकार करने की शक्ति भी प्रदान की थी. इसलिए यह दिन 'हिंदी अर्थात भारतीय' भाषाओँ की संवैधानिक प्रतिष्ठा का दिन है. किसी भी प्रकार के तात्कालिक राजनैतिक लाभ के लिए हिंदी को भगिनी भाषाओँ या बोलियों का प्रतिद्वंद्वी बताकर भाषाई विद्वेष पैदा करने की हर कोशिश को नाकाम करने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है. एक वयस्क लोकतंत्र के रूप में हमें भाषाई सह-अस्तित्व की समझ भी विकसित करनी होगी. अपने अपार संख्याबल को एकजुट रखकर ही हिंदी भाषा प्रथम विश्वभाषा हो सकती है, अन्यथा बिखर जाने का पूरा ख़तरा है।

दूसरी बात मुझे यह कहनी है कि आज के डिजिटल युग में हिंदी के साथ नए प्रयोजन जुड़ते जा रहे हैं। हिंदी को विश्वभाषा का गौरव प्रदान करने वाले अनेक आयाम हैं। हिंदी भाषा अपने लचीलेपन के कारण कूटनीति और प्रशासन की भी भाषा के रूप में उभर रही है। इतना ही नहीं, वह रोजगारोन्मुख भाषा है, राजनीति की भाषा है, ज्ञान-विज्ञान की भाषा है, मनोरंजन की भाषा है, मीडिया की भाषा है। साथ ही वह बाजार-दोस्त भाषा और कंप्यूटर-दोस्त भाषा भी बन गई है। इन आयामों में शब्द संपदा से लेकर अभिव्यंजना पद्धति तक अनेक स्तरों पर हिंदी के अनेक लोकरंजक रूप सामने आए हैं। व्यावसायिक जगत की चुनौती को विज्ञापन और मनोरंजन के माध्यम से स्वीकार करके हिंदी ने अपने आपको बाजार-दोस्त की भाषा के रूप में सिद्ध किया है। हिंदी में भाषा मिश्रण और भाषा परिवर्तन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिससे आतंकित होने की कोई ज़रूरत नहीं। वैश्विक स्तर पर हिंदी को अपना स्थान सुनिश्चित करना हो तो इन आयामों के साथ-साथ उसे विश्वविद्यालय, न्यायालय और संसद के व्यवहार की भाषा भी बनना होगा।

5 टिप्‍पणियां:

  1. वैश्विक स्तर पर हिंदी को अपना स्थान सुनिश्चित करना हो तो इन आयामों के साथ-साथ उसे विश्वविद्यालय, न्यायालय और संसद के व्यवहार की भाषा भी बनना होगा।
    .बहुत सटीक

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-09-2017) को गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर :चर्चामंच 2725 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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