28 सितम्बर 1985 को सीतापुर (उ.प्र.) में जन्मे सरल, सहज एवं शान्तिप्रिय व्यक्तित्व के धनी श्री चंद्रेश शुक्ल 'शेखर' एक संभावनाशील युवा गीतकार हैं। सम्भावना के मूल में प्रतिभा ही होती है। कई विद्वानों का मत है कि 'काव्य का बीजरूप' प्रतिभा (‘‘कवि-प्रतिभा-प्रौढि़रेव प्राधान्येनावतिष्ठते’’— आचार्य मम्मट) विरासत में नहीं मिलती, इसे मेहनत और लगन से अर्जित किया जाता है। चंद्रेश जी यह सब भलीभाँति जानते हैं और शायद इसीलिये उन्होंने अपनी जीवनगत परिस्थितियों से सबक लेकर अपने सृजन-पथ को प्रशस्त तो किया ही, अपने प्रातिभ-संस्कारों से साथी रचनाकारों में प्रतिष्ठा भी पायी है। किसी युवा का कविरूप में प्रतिष्ठित होना कोई आसान कार्य नहीं है, क्योंकि इसके लिए उसे समकालीन भाव-बोध-भाषा-शिल्प का सम्यक ज्ञान होने के साथ सार्थक कविता करने की समझ भी होनी चाहिए। इस दृष्टि से लोकधर्मी मूल्यों से लैस अर्थ-प्रवण गीतों की सर्जना करने वाला यह गीतकवि कदाचित सौभाग्यशाली ही कहा जाएगा— "आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य/ मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य" (प्रख्यात गीतकार आ. गोपाल दास नीरज जी); अग्निपुराण भी तो यही कहता है— ‘‘नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा/ कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा’’ (अर्थात् संसार में मनुष्य का जन्म पाना दुर्लभ है। मनुष्य जन्म पा भी लिया तो विद्या प्राप्त करना कठिन है। विद्या मिल गयी तो कवित्व पाना और कवित्व मिलने पर 'नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा' पाना और भी अधिक कठिन है)। आपके गीत 'सृजन के सितारे', 'गुनगुनाएँ गीत फिर से', 'नई पीढ़ी के नए गीत' आदि गीत संकलनों एवं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपको माँ फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा 'युवा रचनाकार सम्मान 2015', सत्यार्थ : सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था, लखनऊ द्वारा 'गीत गौरव सम्मान 2017' आदि से अलंकृत किया जा चुका है। सम्प्रति— प्राइवेट जॉब। संपर्क— L/L2, नन्दा फार्म, फैजुल्लागंज, लखनऊ-226020, मोबाइल- 9129693974
आ. राम सेंगर जी द्वारा उपलब्ध कराया गया चित्र |
जब कलियुग ने
जीवन के ही
सारे मानक बदल दिए हों,
कहो मुरारी
तब द्वापर की
गीता कितनी प्रासंगिक है?
तुम कहते हो
आत्मा केवल तन बदले है,
अजर-अमर है
मैं कहता हूँ
अब आत्मा की अक्षुण्णता
बस बचपन-भर है
तुम कहते हो
युद्ध, धर्म है इससे
हटना कायरता है
मैं कहता हूँ
इस युग में तो
धर्म, युद्ध की बलि चढ़ता है
जब कलियुग ने
धर्म-युद्ध के सारे
मानक बदल दिए हों,
कहो मुरारी
युद्धधर्म की शिक्षा
कितनी प्रासंगिक है?
2. मैं तो सच कहूँगा !
चाहे स्वीकारे जगत
या करदे अस्वीकार,
मैं तो सच कहूँगा !
आप मुझसे झूठ का
यशगान सुनना चाहते है
वह भी अपनी शर्त पर
श्रीमान सुनना चाहते हैं !
आपकी बाजीगरी धिक्कार,
मैं तो सच कहूँगा !
आप ही रख लीजिए
यह मंच, ये तमगे, दुशाले
गीत मेरे इन छलावों
में नहीं आते निराले
आपका यह मंत्र है बेकार,
मैं तो सच कहूँगा !
एक दिन जब काल इस
कलिकाल का निर्णय लिखेगा
आपकी होगी पराजय
और मेरी जय लिखेगा
आपको पूजे भले संसार,
मैं तो सच कहूँगा !
3. रीढ़ में हड्डी नहीं है
रीढ़ में हड्डी नहीं है
लिजलिजा-सा द्रव्य कोई
लोग इसको ही सफलता
का नया साधन बताते
बस जुगाड़ी याचनाएँ
आज परिचर्चा बनी हैं
और सब संवेदनाएँ
स्वार्थ के रंग में सनी हैं
जोकरों का वेष धरकर
शारदा सुत घूमते हैं
लाभ की आशा लिए
ऐश्वर्य के पग चूमते हैं
नफरतों को पूजते हैं
प्रेम की सौगंध खाते
प्रेम में अश्लीलता है
ओज बोझिल है, थकित है
और करुणा देखकर
इनकी कुटिलता भी चकित है
दो किताबें भी न देखीं
पोथियाँ गढ़ने लगे हैं
और अपनी ही नज़र में
ये गगन चढ़ने लगे हैं
काश अपने मस्तकों पर
धैर्य का चंदन लगाते।
4. फिर तुम आना
एक प्रतिज्ञा जीवन भर की
निभा सको तो
फिर तुम आना !
काटे-छाँटे, नापे-जोखे
सारे रिश्ते, बोनसाई
सबकी अपनी-अपनी खुशियाँ
कौन निभाये पीर पराई
मन का मन से मन भर रिश्ता
चला सको तो
फिर तुम आना !!
परिणय के बंधन में बंधकर
भी कुछ रिश्ते खो जाते हैं
और अजाने से कुछ रिश्ते
चलते-फिरते हो जाते हैं
मुझसे मिलकर दुनियादारी
भुला सको तो
फिर तुम आना।
5. तपकर होते बुद्ध
मुश्किल होता है कर पाना
खुद ही खुद से युद्ध
वैभव से सिद्धार्थ उपजते
तपकर होते बुद्ध
जब आहत करने लगती हैं
पीड़ाएँ जन-मन की
जब पीड़ादायक लगती हैं
सुविधाएँ साधन की
तब बुद्धत्व मार्ग पर मन का
पहला पग बढ़ता है
होने लगता है मन का जब
कोई कोना शुद्ध
क्या पत्नी, क्या पुत्र
और क्या राजपाट, संसार
उस योगी को जिसका केवल
लक्ष्य जीव उद्धार
बहता पानी रमता जोगी
कब क्षण भर ठहरा
और कौन कर पाया अब तक
इनका पथ अवरुद्ध।
Chandresh Shukl 'Shekhar': Five Hindi Lyrics. Navgeet
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