भारतीय जनमानस में मानविकी/कला (ह्यूमनिटीज/आर्ट) को लेकर यह आम धारणा है कि इस स्ट्रीम की पढ़ाई-लिखाई से आधुनिक जीवन-जगत में अपेक्षित उन्नति संभव नहीं हैं। वह यह भी मानकर चलता है कि इस स्ट्रीम में पढ़ाई-लिखाई अधिकांशतया कमजोर एवं आर्थिक रूप से पिछड़े छात्र-छात्राएँ करते हैं या ऐसे छात्र-छात्राएँ इस स्ट्रीम में आते हैं जो कहीं और प्रवेश नहीं पा सके। किन्तु, यह सच नहीं है। आज दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है। इस बदलाव ने न केवल मानविकी/कला के प्रति भारतीय जनमानस का नजरिया बदला है, बल्कि मानविकी के अध्येताओं के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में करियर के बेहतरीन विकल्प भी खोले हैं।
मानविकी (ह्यूमनिटीज) के अतंर्गत मानव समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के साथ देश-दुनिया में हो रहे सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक बदलावों का अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है। इसमें भाषा एवं साहित्य के साथ सामाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल, मनोविज्ञान आदि विषय शामिल हैं। उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गत वर्ष बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के परिसर में मानविकी (ह्यूमनिटीज) संकाय की स्थापना की गयी।
उच्चस्तरीय शिक्षा
बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ने मानविकी (ह्यूमनिटीज) संकाय को समृद्ध बनाने के लिए छात्र-छात्राओं को उच्चस्तरीय शिक्षा प्रदान करने की परिकल्पना की है। इस हेतु विश्वविद्यालय में योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों का चयन तो किया ही गया है, छात्र-छात्राओं के पठन-पाठन के लिए सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। यह विश्वविद्यालय उच्चस्तरीय शिक्षा के साथ शोधपरक कार्यों में भी संलग्न है।
व्यावहारिक ज्ञान
आधुनिक संसार में ज्ञान के विविध क्षेत्रों में अंतर्संबंध है— भाषा का साहित्य से संबंध है, साहित्य का समाजशास्त्र से संबंध है, समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से संबंध है, मनोविज्ञान का अर्थशास्त्र से संबंध है आदि। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी का विषय साहित्य है, तो उसे समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना चाहिए। इसीलिये मानविकी (ह्यूमनिटीज) संकाय में छात्र-छात्राओं को भाषा, साहित्य, संस्कृति, समाज आदि के बारे में व्यावहारिक ज्ञान भी दिया जाता है, ताकि लोक व्यवहार के साथ-साथ व्यक्तित्व निर्माण भी हो सके।
रचनात्मक कौशल विकास
बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी
का मानविकी (ह्यूमनिटीज) संकाय रचनात्मक शिक्षा के माध्यम से छात्र-छात्राओं
के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास के लिए सभी प्रकार की शैक्षणिक एवं शिक्षणेत्तर
सुविधायें उपलब्ध करा रहा है। यह संकाय अपने छात्र-छात्राओं में मानव मूल्यों की स्थापना
और उनमें रचनात्मक जीवन शैली के विकास के लिए भी कार्यरत है। इससे छात्र-छात्राओं का
सर्वांगीण विकास तो होगा ही, चिकित्सा, विज्ञान और कॉमर्स आदि क्षेत्रों में कार्यरत
व्यक्तियों की तरह ही उन्हें भी सामाजिक प्रतिष्ठा मिल सकेगी।
खुशहाल
जीवनशैली
आज की दुनिया के केंद्र में उत्पादन, उत्पाद और व्यापार है, जिससे मनुष्य जीवन में आपाधापी और भागमभाग काफी हद तक बढ़ गयी है। ऐसे में आर्थिक रूप से संपन्न, रचनात्मक एवं खुशहाल जीवन जीने के लिए मानविकी के विषयों का अध्ययन-मनन संजीवनी का कार्य कर सकते हैं। शायद इसीलिये बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी का मानविकी (ह्यूमनिटीज) संकाय समय-समय पर योगाभ्यास, व्यायाम, खेल, सेवा, स्वास्थ्य, संवाद, साक्षात्कार, वाद-विवाद, परिचर्चा, फिल्म, डाक्यूमेंट्री, आसपास का भ्रदेशाटन से संबंधित कार्यक्रम आयोजित कर सार्थक एवं सुखी जीवन जीने की कला सिखा रहा है।
उपलब्ध पाठ्यक्रम
पीएचडी, एम.ए. (हिंदी), एम.ए.
(अंग्रेजी), एम.ए. (सामाजशास्त्र), एम.ए. (मनोविज्ञान)
साहित्य संगीत कला विहीन:,साक्षात् पशुःपुच्छ बिषाणहीनः।हमारे यहाँ प्रचीनकाल से शिक्षा के साथ साहित्य कला और संगीत अनिवार्य रूप से समाविष्ट था, पर आधुनिक काल में जब से शिक्षा का ध्येय नौकरी तक सीमित रह गया तब से ये शिक्षा से पृथक हो गये ।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख ।
बधाई आपको!
The article is based on the need of present day education.Today, students of human sciences are rising in Various fields. The concept of science and technique is providing scope to humanities.It is evident that the students of today seem more inclined towards subjects of humanities. In this respect, BIU is
जवाब देंहटाएंplaying very significant role by providing education of Various subjects of humanities .I hope for bright future of the university
बहुत जरूरी आलेख है। इस धारणा को बल प्रदान करने में शिक्षा संस्थानों का भी बड़ा हाथ है। दसवीं में कम अंक लाने वाले विद्यार्थी को विज्ञान संकाय में प्रवेश ही नहीं दिया जाता। इससे विज्ञान संकाय के छात्र और अध्यापक कला और मानविकी वालों को नीची दृष्टि से ही देखते हैं। इस तरह धारणाएँ बलवती होती गईं। अब समय आ गया है कि इस धारणा को बदला जाए। आसान तो नहीं है, किन्तु बदला जा सकता है। आपका यह आलेख इस दिशा में मील का पत्थर बन सकता है।
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