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शुक्रवार, 5 जून 2020

अवनीश सिंह चौहान के प्रेम गीत


बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत कवि, आलोचक, अनुवादक डॉ अवनीश सिंह चौहान हिंदी भाषा एवं साहित्य की वेब पत्रिका— 'पूर्वाभास' और अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका— 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' के संपादक हैं। 'शब्दायन', 'गीत वसुधा', 'सहयात्री समय के', 'समकालीन गीत कोश', 'नयी सदी के गीत', 'गीत प्रसंग' 'नयी सदी के नये गीत' आदि समवेत संकलनों में आपके नवगीत और मेरी शाइन द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' एवं डॉ चारुशील एवं डॉ बिनोद मिश्रा द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'एक्जाइल्ड अमंग नेटिव्स' में आपकी रचनाएं संकलित की जा चुकी हैं। पिछले पंद्रह वर्ष से आपकी आधा दर्जन से अधिक अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढाई जा रही हैं। आपका नवगीत संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' साहित्य समाज में बहुत चर्चित रहा है। आपने 'बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता' पुस्तक का बेहतरीन संपादन किया है। 'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले इस युवा रचनाकार को 'अंतर्राष्ट्रीय कविता कोश सम्मान', मिशीगन- अमेरिका से 'बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड', राष्ट्रीय समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' का 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', अभिव्यक्ति विश्वम् (अभिव्यक्ति एवं अनुभूति वेब पत्रिकाएं) का 'नवांकुर पुरस्कार', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान- लखनऊ का 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान' आदि से अलंकृत किया जा चुका है।

1. एक आदिम नाच 


आज मुझमें बज रहा
जो तार है -
वो मैं नहीं -
आसावरी तू

एक स्मित रेख तेरी
आ बसी जब से दृगों में
हर दिशा तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में, खगों में

दर्पणों के सामने
जो बिम्ब हूँ -
वो मैं नहीं -
कादम्बरी तू

सूर्यमुखभा!, कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा!, कटिकमानी
बींध जाते हृदय मेरा
मौन इनकी दग्ध वाणी

नाचता हूँ एक आदिम 
नाच जो -
वो मैं नहीं-
है बावरी तू। 

2. वे ठौर-ठिकाने 


बीत रहे दिन और महीने
बीत रहे हैं पल
यादों में वे ठौर-ठिकाने
नैनों में मृदुजल

ताल घिरा पेड़ों से जैसे
घिरे हुए थे बाहों में 
कूज रहे सुग्गे ज्यों तिरियाँ 
गायें सगुन उछाहों में 

आँचल में मधुफल टपका है
चूम लिया करतल

शाम, जलाशय, तिरते पंछी
रात पेड़ पर आ बैठे 
चक्कर कई लगाकर हम तुम
झुरमुट नीचे जा बैठे

पर फड़काकर पंछी कहते
देर हुई घर चल। 

3. बिना बताए कहाँ गए 


टूट गए पर
तुम बिन मेरे
पिंजरे में दिन-रात

रजनीगंधा दहे रात भर,
जागे-हँसे चमेली
देह हुई निष्पंद कि जैसे
सूनी खड़ी हवेली

कौन भरे
मन का खालीपन?
कौन करेगा बात?

कोमल-कोमल दूब उगी है
तन-मन ओस नहाए
दूर कहीं कोई है वीणा
दीपक राग सुनाए

खद्योतों ने भरी उड़ानें
जरे कमलनी पात

बिना नीर के नदिया जैसी, 
चंदा बिना चकोरी
बिना प्राण के लगता जैसे
माटी की हूँ छोरी

प्राण प्रतिष्ठा हो-
सपनों की
टेर रही सौग़ात। 

4. नीड़ बुलाए


मंगल पाखी वापस आओ
सूना नीड़ बुलाए

फूली सरसों खेत हमारे
रंगहीन है बिना तुम्हारे
छत पर मोर नाचने आता
सुगना शोर मचाए

आँचल-धानी तुमको हेरे
रुनझुन पायल तुमको टेरे
दिन सीपी के चढ़ आये हैं
मोती हूक उठाए

ताल किनारे हैं तनहा हम
हंस पूछते क्यों आँखें नम
द्वार खड़ा जो पेड़ आम का
बहुत-बहुत कड़ुवाए। 

5. अन्तर में जो बन्ना 


एक प्रवासी 
भँवरा है,
रंग-गंध का गाँव है

फूलों को वह भरमाता है
मीठे-मीठे गीत सुनाकर
और हृदय में बस जाता है
मादक-मधु मकरंद चुराकर 

निष्ठुर,
सुधि की धूप बन गया
विरह गीत की छाँव है


बीत रही जो फूलों पर, वह 
देख-देख कलियाँ चौकन्ना 
सहज नहीं है उसका मिलना 
बैठा, अन्तर में जो बन्ना

पता चला
वह बहुत गहन है
उम्र कागज़ी नाव है। 

Love Songs in Hindi by Abnish Singh Chauhan

5 टिप्‍पणियां:


  1. आपके गीतों की रागात्मक व्यंजना ने मन छू लिया। ऐसे गीत तोअबविरले ही पढ़ने सुनने को मिल पाते हैं बहुत शुभकामनाएँ।

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  2. अद्भुत शब्द संयोजन आपके द्वारा रचित यह गीत भावनात्मक रूप से इतने सशक्त हैं के सहज ही पाठक के अंतर्मन को कहीं गहरे छू लेते हैं जिस तरह के भाव व्यंजनों को आपने यहां व्यक्त किया है समकालीन रचनाकारों में ऐसी भाव व्यंजनों की अपेक्षा कहीं दूर की कौड़ी साबित होती है आपके प्रेम गीत पहली बार पढ़ने का अवसर मिला है निश्चित रूप से टच के बिंबो एवं अनूठे प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहने का एक विलक्षण हुनर दिखाई पड़ता है यहां श्रृंगार रचना का प्राण माना जाता है एक ही रस माना गया है सिंगार दुनिया में काव्य लेखन करने वाला रचनाकार जब तक श्रृंगार की रचनाएं नहीं लिखता तब तक उसकी लेखन तपस्या अधूरी मानी जाती है कलम ने काव्य रचना नहीं की है बल्कि शब्द चित्र बने हैं जिन्हें पढ़कर सहज ही मस्तिष्क पटल पर घटनाओं का खाका क्रमशः अंकित होता रहता है बहुत सुंदर रचना आपको हृदय से बधाई

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  3. भाव-बोध के स्तर पर अवनीश जी के ये प्रेम गीत बहुत गहन हैं। भाषा-बिम्ब और प्रतीकों की कलात्मकता भी प्रेम की सच्ची और मीठी अनुभूति कराने में सफल हुई है। अवनीश जी के प्रेम गीत सामान्य नहीं हैं। उन्हें कोटिशः बधाई।
    -- वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर (उ.प्र.)

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  4. एक एक गीत अपने में भावों का गुम्फ़न है ।पहले गीत में आत्मा को नायिका के रूप में प्रस्तुत करना स्तुत्य ।बहुत सुंदर!अनेकशः बधाई गीतकार को ।

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  5. दिखने में जो शांतप्रिय, सद् विचार के कोष।
    बातचीत संवाद में, करते सच का घोष।।
    मुखमंडल जैसे अभी-, अभी खिला हो प्रात।
    कहने को अवनीश हैं, संतों-सा संतोष।।

    - वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर

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