पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

शुक्रवार, 5 जून 2020

अवनीश सिंह चौहान के हिंदी हाइकु


बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत कवि, आलोचक, अनुवादक डॉ अवनीश सिंह चौहान हिंदी भाषा एवं साहित्य की वेब पत्रिका— 'पूर्वाभास' और अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका— 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' के संपादक हैं। 'शब्दायन', 'गीत वसुधा', 'सहयात्री समय के', 'समकालीन गीत कोश', 'नयी सदी के गीत', 'गीत प्रसंग' 'नयी सदी के नये गीत' आदि समवेत संकलनों में आपके नवगीत और मेरी शाइन द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' एवं डॉ चारुशील एवं डॉ बिनोद मिश्रा द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'एक्जाइल्ड अमंग नेटिव्स' में आपकी रचनाएं संकलित की जा चुकी हैं। पिछले पंद्रह वर्ष से आपकी आधा दर्जन से अधिक अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढाई जा रही हैं। आपका नवगीत संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' साहित्य समाज में बहुत चर्चित रहा है। आपने 'बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता' पुस्तक का बेहतरीन संपादन किया है। 'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले इस युवा रचनाकार को 'अंतर्राष्ट्रीय कविता कोश सम्मान', मिशीगन- अमेरिका से 'बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड', राष्ट्रीय समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' का 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', अभिव्यक्ति विश्वम् (अभिव्यक्ति एवं अनुभूति वेब पत्रिकाएं) का 'नवांकुर पुरस्कार', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान- लखनऊ का 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान' आदि से अलंकृत किया जा चुका है।

1

अजाने रास्ते
चलते रहे पाँव
ज़िंदगी भर

2

जरूरी नहीं
जो पढ़ा है तुमने
पढ़ा सकोगे 

3

जिनके घर
बने हुए शीशे के
लगाते पर्दे 

4

तेरी-मेरी है
बस एक कहानी
राजा न रानी

5

प्रभु के लिए
छप्पन भोग बने
खाये पुजारी

6

बड़े दिनों से
मन है मिलने का
समय नहीं 

7

घोंसले जले
आग से जंगल में
भागे परिंदे

8

आखिर फिर
फूल हुए शिकार
पतझड़ में

9

कहने को तो
सफर है सुहाना
थकते जाना

10

पहल हुई
महिला हो मुखिया
कागज़ पर

11

नदिया चली
तटों से गले मिल
पिया के घर

12

कैसा उसूल
पत्थरों के हवाले
मासूम फूल

13

अनंत यात्रा
जीवन, जगत की
ढेरों पड़ाव

14

जीव मात्र में
सुख की अभिलाषा
छटे कुहासा

15

नहीं सुनाती
अब एक भी लोरी
मइया मोरी

16

तीन काल हैं
कालातीत के लिए
वर्तमान ही

17

भोगी अधिक
योगी बहुत कम
कलयुग में

18

लेने का भाव
उससे कहीं बड़ा
देने का भाव

19

जड़-चेतन
सबके सब रूप
परमात्मा के

20

परम पद
सदभक्त को मिले
प्रभुकृपा से

21

निमित्त मान
करता जो साधना
पाये आनन्द

22

स्वतंत्र सत्ता
अहंकार की नहीं
कहीं पर भी

23

कृष्ण उवाच
युद्ध कभी हो, न हो
मृत्यु निश्चित

24

नहीं सुनाती
अब एक भी लोरी
मइया मोरी

25

प्रकाश-मुग्ध
पतंगे होते स्वाहा
सदा अग्नि में

26
 
घर-घर में
फैला रहे हैं डर
टीवी-चैनल

27

उल्लू के पठ्ठे
उल्लू नहीं होंगे तो
भला क्या होंगे

28

किसे पता है
नाचे कृष्ण-मुरारी
वृन्दावन में

29

लगे अधूरा
यह घर, संसार
मैया के बिना

30

घोंसले जले
आग से जंगल में
भागे परिंदे

31

प्रेमी युगल
अक्सर मुस्काते हैं
मन ही मन

32

प्रश्न यह है
कब तक जिएंगे
मर-मर के

33
 
अजब राग
अपने-अपने का
बजाते लोग

34
 
पण्डे कहते
खुद को प्रतिनिधि
भगवान का

35

दर्ज बही में
हम सब का खाता
होता भी है क्या ?

36

कितने कवि
लिख-लिख कविता 
हुए पागल

37

पड़ी लकड़ी
जब भी है उठायी
आफ़त आयी

38

रास्ता दिखाते
जगमगाते तारे
रोड किनारे  


3 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की ध्वनियों, कहन-बिम्बों- दोनों के सामंजस्य से इन हाइकुओं में रस परिपाक हुआ है। अवनीश जी हाइकु लेखन में भी प्रवीण हैं, आज ज्ञात हुआ। इस अतिरिक्त प्रसन्नता के साथ उन्हें अनेक आशीष।

    -- वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर (उ.प्र.)

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  2. Simply beautiful, Abnish!

    You are adept in telling the truth in such few words in a very beautiful manner.

    -- Manjusha Tawase,

    जवाब देंहटाएं
  3. ऊपर से हँसमुख बहुत भीतर से गम्भीर।
    ऑंखें देखूँ, तैरती दिखे पराई पीर।।

    ..........शुभाशीष

    - वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर

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