मृदुभाषी, विनम्र एवं प्रसन्नचित्त साहित्यकार इन्द्र बहादुर सिंह भदौरिया (उपनाम- इन्द्रेश भदौरिया) का जन्म 24 दिसंबर 1954 को ग्राम- मोहम्मद मऊ, पोस्ट- कठवारा, जिला- रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ। जन-सामान्य में प्रचलित शब्दों एवं मुहावरों को लोकधर्मी काव्य में परिणित करने की कला में निष्णात इन्द्रेश जी का अवधी साहित्य— 'बसि यहै मड़इया है हमारि' (2010), 'गजब कै अँधेरिया है' (2015), 'कुलटा चरित हास्य भण्डारा' (2015) एवं 'बुढ़उनूँ चुप्पी साधौ' (2017, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से दिसंबर 2018 में 'पण्डित वंशीधर शुक्ल पुरस्कार' से पुरस्कृत) समकालीन सरोकारों को बड़ी बेबाकी से मुखरित करता प्रतीत होता है। इस दृष्टि से अवधी भाषा-साहित्य के वर्तमान परिदृश्य में दया, प्रेम, करुणा, आस्था एवं अहिंसा का पावन सन्देश देने वाले भदौरिया जी का नाम आ. बलभद्र प्रसाद दीक्षित 'पढ़ीस', गुरु प्रसाद सिंह 'मृगेश', वंशीधर शुक्ल, रमई काका, द्वारिका प्रसाद मिश्र, बेकल उत्साही, पारस भ्रमर, विकल गोंडवी, आद्या प्रसाद 'उन्मत्त', जगदीश पीयूष आदि विशिष्ट रचनाकारों की सूची में बड़े सम्मान के साथ जोड़ा जा सकता है।
वैसे तो इन्द्रेश भदौरिया का नाम देश के श्रेष्ठ कुण्डलियाकारों की सूची में भी जोड़ा जा सकता है (ख्यात कुण्डलियाकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला पहले ही 'कुण्डलिया छंद के नये शिखर' संकलन में इंद्रेश जी की कुण्डलियों को स्थान देकर निश्चित ही सराहनीय कार्य कर चुके हैं)। जोड़ा जाना भी चाहिए। परन्तु, 'चाहिए' कहने भर से काम कहाँ चल पाता है? अक्सर देखने में आया है कि हमारे देश के गांव-जंवार में रहने वाले तमाम साहित्यकारों के रचनाकर्म से साहित्य समाज उस प्रकार से परिचित नहीं हो पाता, जिस प्रकार से होना चाहिए। इसीलिये ऐसे तमाम साहित्यकारों की सर्जना न तो साहित्य की मुख्य धारा में आ पाती है और न ही उस पर चर्चा-परिचर्चा, संकलन, शोध आदि ही हो पाते हैं। कई बार तो अच्छी पत्रिकाएँ भी उन्हें स्पेस नहीं दे पातीं। इसके पीछे कारण कई हो सकते हैं, होने भी चाहिए। परन्तु, बात तब तक नहीं बनेगी जब तक इन समस्याओं का निराकरण नहीं होता और अच्छे रचनाकारों को जानने-समझने का माहौल नहीं बनता। इसके लिए हम सब को सकारात्मक सोच तो रखनी ही होगी, संगठित होकर सहयोगात्मक कार्य भी करने पड़ेंगे।
आने वाले समय में क्या होगा, क्या नहीं, यह तो समय ही बतलायेगा, किन्तु यहाँ इस रचनाकार के आगामी कुण्डलिया संग्रह— 'कुण्डलियाँ सुमन' के लिए उसे बधाई तो दी ही जा सकती है।
श्री गणेश को ध्यान करि सारद सीस नवाय।
कुलटा का वर्णन करूँ माता होउ सहाय।1
हंस वाहिनी कृपा करि सादर या लिखि देउ।
जो कहुँ गलती होय कुछ तुरत ठीक करि देउ।2
नर - नारी यहि जगत मा सब हैं एक समान।
आपस मा हिलिमिलि रहैं हो समाज उत्थान।3
नर - नारी तन पाइके करैं नहीं अभिमान।
नारी घर की लक्षमी नर है देव समान।4
आपन भारत देश महाना।
नारी को देवी सम जाना।
कबि कोबिद को सकै बखानी।
नारी पूज्य सकल गुण खानी।
सेवा नित करती सब घर की।
नारी से सोभा हर घर की।
है पूजित सब घर - घर माहीं।
नारी से बढ़िके कोउ नाहीं।
वह ही घर है स्वर्ग समाना।
जहाँ होय नारी सम्माना।
तव समान जग में कोउ नाहीं।
अखिल बिस्व सचराचर माहीं।
तुमही अखिल विस्व की दाता।
सुर समाज तुम्हरौ जस गाता।
तुम्हरौ चरित परम हितकारी।
जो सज्जन पढ़िहैं सुविचारी।
तेहिके पाप नसइहैं सबही।
नारी पिरेम जतइहैं जबहीं।
केहि बिधि स्तुति करौं तुम्हारी।
लघु मति मोरि न सकै बिचारी।
पूजित हर घर में तुम्ही लाखों में हो एक।
माता, बहना, पुत्री, पतनी रूप अनेक।5
तुमसे ही घर स्वर्ग है तुमसे नरक समान।
नारी देवी रूप हैं नर हैं देव समान।6
लरिका बच्चन का तुम पालौ।
गृह कामन ते समय निकालौ।
घर से बाहर तक तुम जाई।
मन लगाय के करौ कमाई।
कहुँ बाबू तो कहुँ चपरासी।
जग मा नारि महा सुखरासी।
कहूँ सिक्षिका कहुँ अधिकारी।
पी सी एस आइ ए एस नारी।
बनि बैग्यानिक ग्रह पर जाई।
नर संग काज करो मन लाई।
करउ नौकरी बाहर जाकर।
तुमही गृहणी तुमही चाकर।
पति कितना भी हो नालायक।
करि संतोष बनो सुखदायक।
नर से भी उपयोगी नारी।
सब समाज मा बहु उपकारी।
थी लक्ष्मी बाई मरदानी।
घर घर गूँजत कथा किहानी।
इन्दिरा थी भारत की नारी।
ताको जानत दुनिया सारी।
एक नहीं संख्या अधिकाई।
जिनकी जग में होय बड़ाई।
तुमहूँ कर्म करउ सुखरासी।
सुख उपजै हो दूरि उदासी।
तुमसे बढ़िके केहिका जानी।
तुम्ही रक्षिका बनी भवानी।
नमन करौं मैं सत सत बारी।
पुरुसन से भी बढ़िके नारी।
तुमही हौ सबकी कल्याणी।
प्रिय लागै अति तुम्हरी वाणी।
नारी पूज्य हैं अपने करमा।
सबकी सेवा करती घर मा।
सास ससुर की सेवा करती।
पति आग्या सिर माथे धरती।
लरिका बच्चन का नित पालै।
कउनिउ करती नहीं कुचालै।
सुख दुख सब सहती हैं घर मा।
लरिकन के हित करैं सुकरमा।
भारत कै संस्कृति सभ्यता।
जानि करैं न कबौं असभ्यता।
देस की जो भी आन बान है।
नारी का भी योगदान है।
तुम्ही अग्य मैं मन्द मति केहि बिधि करौं बखान।
नारी नर की खान है कहि रहे बेद पुरान।7
नारी में गुण हैं बहुत निज मति के अनुहारि।
नहीं जगह ऐसी बची जहाँ न पहुँची नारि।8
हम सबका कर्तव्य दें नारी को सम्मान।
कभी करें नहिं भूलकर नारी का अपमान।9
कवि काका की मति अनुसारी।
जग में चार तरह की नारी।
पहली तुष्टा दूसरि रुष्टा।
तीसरि पुष्टा चौथी दुष्टा।
तुष्टा वे निज पति अनुसरहीं।
मन को लगा काज सब करहीं।
थोरेन मा करती संतोषा।
मढ़ती नहिं दुसरे पर दोषा।
रहि घर मा कर्तव्य निभउतीं।
पीहर से ज्यादा सुख पउतीं।
घर - परिवार सबै के संगा।
रखती हैं आपन मन चंगा।
पति बुद्धू हो या नालायक।
समझैं वहिका सब फल दायक।
अस पतनी मिलती हैं जेहिका।
बड़भागी नर समझो वहिका।
अपने काम से मतलब राखैं।
असगुन नाँहि कोहू कर भाखैं।
देखि परैं घर खुसी हमेसा।
रहइ ना घर मा दुक्ख कलेसा।
अइसि नारि पावैं बड़भागी।
सब बिधि रहैं गुणन ते पागी।
याको सब अबला कहैं होती गुण की खान।
सुर नर मुनि करते सदा देवी का गुणगान।10
ऐसी नारी पूज्य हैं हर समाज हर देस।
तन मन से सेवा करैं हरती सकल कलेस।11
अब रुष्टा कर करौं बखाना।
जैसा सुना व देखा जाना।
काम धाम सब घर के करिहैं।
पति बिपरीत काम अनुसरिहैं।
पहिला काम बादि मा करिहै।
पाछे का आगे करि डरिहैं।
पति जो कहै है पूरब जाना।
तब पस्चिम का करैं पयाना।
पति पर अपने दोस लगावैं।
अपने का निरदोस बतावैं।
यहै दोस है उनका तगड़ा।
ल्यात फिरैं सबहिन ते झगड़ा।
इनका तुष्टा से कम जानउ।
पर इनका अच्छा ही मानउ।
अब पुष्टा का चरित बखानउँ।
पहलवान नारी यह जानउँ।
हट्टा - कट्टा बदन बहु तगड़ा।
देखि कोउ नहिं लेत है झगड़ा।
अवसर पाइ पतिउ का मारै।
सात पुस्ति के पुरिखा तारै।
सास ससुर अरु जेठ जेठानी।
ननद अउर देवर देउरानी।
सबै लोग भय इनसे मानैं।
इनहिनि का सरवोपरि जानैं।
पुष्टा नारी करकसा होती अति बलवान।
क्रोधित होती जब कभी देती झापड़ तान।12
डरते ही रहते सदा सारे घर के लोग।
दूर दूर रहते सभी मान इसे दुरयोग।13
अब दुष्टा की बातै करबै।
उनका चरित हृदयँ मा धरबै।
नर - नारी सब इससे डरते।
इनके सम्मुख बात न करते।
पर पीछे धिक्कार लगावैं।
सबसे तुच्छ इनहिं बतलावैं।
हमहूँ बात करित है उनकी।
जगमा हँसी हो रही जिनकी।
मैं मतिमंद घोर अग्यानी।
मत मानो अचरज सुनि बानी।
दुष्टा को ही पुष्टा माना।
अब इनहिनि का करौं बखाना।
कुलटा चरित हास्य भण्डारा।
यहिमा कुछ नहिं दोष हमारा।
करै काम जो उलटा - पुलटा।
ताको कहत सबै जन कुलटा।
पुरुष भये संस्कार बिहीना।
हुई नारि अब लज्जा हीना।
गुरु आपन अब भूले धरमा।
भूलि गए नेता निज करमा।
मानवता नहिं परै दिखाई।
अब तो कुसल करैं रघुराई।
एक एक करि सबका भाखौं।
मति अनुसार सबै को राखौं।
ताको वर्णन करन बिचारा।
छमा करौ अपराध हमारा।
सभी देवि अरु देव से कहते सीस झुकाय।
या चरित बहुतै कठिन सबहीं होउ सहाय।14
तुमसे भी बिनती करूँ कुलटा होउ सहाय।
जो भी भूलूँ तव चरित तुरतहिं देव बताय।15
नमो नमो कुलटा महरानी।
नमो देवि हिटलर की नानी।
तुलसी रामायन लिखि दीन्हा।
लेकिन तुम्हरौ ध्यान न दीन्हा।
सूक्ष्म रूप कुछ कियो बखाना।
अवगुण आठ नारि तन माना।
कुलटा चरित मैं गावहुँ नीका।
लागहि सरस या लागै फीका।
यह गलती हम करित है भारी।
अब तो लाज रखैं बनवारी।
सत्य कहउँ लिखि कागद कोरा।
सोचि सोचि डरपत मन मोरा।
कुलटा मा हैं बिबिध परकारा।
अगर लिखउँ उनको बिस्तारा।
तो यह महा ग्रंथ होइ जाई।
यहिते सूक्ष्म रूप अपनाई।
सबका मैं कुछ करौं बखाना।
जइसन सुना व देखा - जाना।
सास ससुर देवर ननद पति से झगड़ा लेय।
कुलटा ताहि सराहिये मार तड़ातड़ देय।16
कुलटा देवी की सरण आया है यह दीन।
मूसर, बेलन, चीमटा अस्त्र तुम्हारे तीन।17
सुर नर मुनि सब तुमसे हारे।
गावत अपयश गान तुम्हारे।
जब से ब्याहि के घर का आई।
रोजुइ झगड़ा रोजु लड़ाई।
कउन जनम के पाप भवानी।
कीन्हेव नरक सब जिन्दगानी।
बेद पुरान कहत सब अबला।
तुम सम दीख न कोऊ सबला।
चइला - बेलना अस्त्र तुम्हारे।
पटकि पटकि बहुतै जन मारे।
बाहर जो नर सेर कहावैं।
तव समक्ष गीदड़ बनि जावैं।
हड़क तुम्हारि सुनैं नर जबहीं।
दिल धड़कन बढ़ जाती तबहीं।
पति जो कबहुँ उपद्रव कीन्हा।
झापड़ तुरत गाल पर दीन्हा।
बने सबै कठपुतरी अइसे।
नाच नचाओ चाहे जइसे।
तुम बिन सून सून घर लागै।
तुमका देखि बहुत डेरु लागै।
घर के कारज न करो घूमो हाट बाजार।
कोऊ कुछ न कहि सकै लीला अपरम्पार।18
कोऊ यदि कुउ कहि परै मचा देउ कोहराम।
कलह मची दिनभर रहै रातिउ नींद हराम।19
द्याखन मा तुम बहुत चटक्का।
ख्यालउ हरदम नैन मटक्का।
नौकर लरिका रोजु खेलावैं।
आप गोद पिलवा दुलरावैं।
खावो रोजु मलाई, मेवा।
पति ते नित करवाओ सेवा।
एकहि धरम औ एकहि नेमा।
नित्तै टीवी नित्त सिनेमा।
अंग पदरसन मा तुम आगे।
स्याँकत आँखि मिलैं बड़भागे।
नारी तन की सान दुपट्टा।
घर घर पोंछि रहा सिलबट्टा।
लिहे मोबाइल खुल्लमखुल्ला।
करउ बात बनि बनि रसगुल्ला।
तरह तरह की बातै करतिउ।
घरके काज ध्यान नहिं धरतिउ।
मुँह बाँधे नित घूमो अइससे।
हत्याहरण जाँय सब जइसे।
तन को नहीं उघारिये मन में रखिये ध्यान।
तन उघारि चलती अगर द्याखत सकल जहान।20
अपनी संस्कृति सभ्यता मत भूलो सुकुमारि।
देखि देखि जग है हँसत यह तौ लेउ बिचारि।21
केवल यह परदोस निहारै।
इनसे सदा रहउ होसियारै।
लच्छन एकउ लगैं न नीका।
बनि आयी जंजाल हैं जी का।
रहैं रोजु ई घर मा सनकी।
कोऊ थाह न पावै मन की।
कटी - कटी हैं सबसे रहतीं।
मन कै बात कबौ नहिं कहतीं।
जो मन मा आवै करि डारैं।
प्रान सबै के रोजुइ जारैं।
हाट बजार जो कहूँ हैं जाती।
करि मेकप चेहरा चमकाती।
किन्तु सबेरे जब हैं जगती।
तब डाइनि जैसी हैं लगती।
मेकप उतना कीजिए जो मेकप करि जाय।
मेकप इतना नहिं करो हँसी उड़ाई जाय।22
मेकप में अवगुण बहुत यह भी लेउ बिचारि।
रासायनिक सब तत्व मिल देते चमड़ी जारि।23
सुन्दरता सब जात नसाई।
नहीं काट फिर करत दवाई।
रूप तुम्हार फिरि सोहै कैसे।
भूत, परेत, चुड़ैलन जैसे।
कंजी आँखि नाक जस सोंटा।
जूड़ा सिर लागै जस लोटा।
ठुड्ढी का तिल अति सुखदाई।
जस खटमल है बइठ रजाई।
बने गाल जस सुघर पकौड़ा।
दाँत लगैं जस धरे हथौड़ा।
सर्ट - पैण्ट तन सोसत कैसे।
जंगल माँहि ताड़का जैसे।
पहिरे मैक्सी बिना दुपट्टा।
घूरि रहे नर हट्टा - कट्टा।
सयन वस्त्र नित दिन में धारौ।
सात पुस्ति के पुरिखा तारौ।
लच्छन तुम्हरे बिबिध प्रकारा।
वर्णन करत भाग्य का मारा।
पति अपने को बहुत लगावत।
लेकिन तुमसे पार न पावत।
सासु ननद पर परतिउ तगड़ी।
ससुर की रोजु उछालौ पगड़ी।
खुद तो मस्ती मउज मनाती।
पति से घर के काज कराती।
अपनी संस्कृति नहीं है भाती।
पस्चिम की सभ्यता सुहाती।
धरम करम नहिं भावत तुमका।
मरतिउ जाय बार मा ठुमका।
गाँव, गली, घर, मेला - ठेला।
रहिउ खेलि लाखन का खेला।
खर्चा उतना ही करो जितनी हो औकात।
करजा ले खरचा करो नहीं ठीक है बात।24
कर्ज बड़ा इक मर्ज है मन में करौ बिचार।
इससे चिन्तित होत है पूरा घर - परिवार।25
इसीलिए सुन लो सुमुखि रहा तुम्हें समझाय।
अपनी संस्कृति सभ्यता से बढ़कर कुछ नाय।26
पर लोगन ते नित अठिलाती।
पति को आँखि काढ़ि गुर्राती।
पति की बात न मानउ एकौ।
नित प्रति देती कष्ट अनेकौ।
जौ कउनिउ अनहोनी होई।
तुमका बचा न पइहैं कोई।
इज्जति माटी मा मिलि जाई।
थाना पुलिस काम न आई।
थाना पुलिस जो कामौ आई।
गै इज्जति वापस नहिं आई।
बड़ी बड़ी तब आँखी कढ़िहौ।
आपन दोस दूजे पर मढ़िहौ।
हरी अकिल नर केरि सयानी।
झेलि रहा तुम्हरी मनमानी।
सुनौ बिनय मम देबी कुलटा।
करौ काम न उलटा - पुलटा।
सुनि पुकार लरिकन की अम्मा।
पत्थर से बनि जाव मुलम्मा।
निज पति को पति मानउ रानी।
यहिसे सफल होय जिन्दगानी।
नहीं तौ फिरिहौ मारी - मारी।
सबै जगह क्षजइहौ दुतकारी।
करउ बिचार तनिक मन माँहीं।
निज पति से बढ़िके कोउ नाँहीं।
सद्कर्मन का करो कराओ।
नरक नहीं बैकुण्ठै जाओ।
हाथ जोरि बिनती करउँ मम बिनती सुनि लेउ।
अपने भारत देश की तनिक लाज रखि लेउ।27
पति को नहीं सताइये पति से है कल्यान।
जो पति से झगड़ा करै सहै कोटि अपमान।28
आरि बगल घर गांव में हँसी उड़ावैं लोग।
आपस में हो प्रेम अति आवै यह संजोग।29
जेहिका समझो तुम सुविचारी।
उनहिनि ते करियो तुम यारी।
ब्वॉयफ्रेंड को भाई भाखौ।
दूरी कुछ बनाय के राखौ।
कामी कुटिल पड़े दिखलाई।
या के पास कबो नहिं जाई।
समय - समय से बाहर जाओ।
समय से घर को वापस आओ।
बात हमारि यहौ तुम मानो।
निज पति का परमेश्वर जानो।
पहनो वस्त्र न बदन दिखाऊ।
जानत तुम विपरीत सुभाऊ।
टॉप - जींस तन बिना दुपट्टा।
इज्जति मा लगवउतीं बट्टा।
अंग प्रदर्शन करो न बहना।
लज्जा है औरत का गहना।
तंग वस्त्र मत करिए धारण।
ये सब हैं आफत के कारण।
समय से घरको आना जाना।
सदाचार है परम खजाना।
पढ़ो लिखो मन खूब लगाई।
नहीं भूलो आपन प्रभुताई।
जग में नारि - मरद हैं कैसे।
दायें - बायें अंग है जैसे।
सुनौ सबै जन धरिके ध्याना।
करो सदा कुलटा गुण गाना।
नारी का करते रहो तुम सदैव सम्मान।
कबहुँ बुरा मत सोचिए नारी संग श्रीमान।30
नारी माता बहन है नारी पतनी होय।
नारी बेटी जगत में जिसकी दुनिया होय।31
होइहैं खुशी प्रेम तब करिहैं।
सात जन्म के पुरिखा तरिहैं।
जो करिहो तनिको मक्कारी।
तो फिरि हानि उठाइहौ भारी।
कही काह लोगन की बीवी
द्याखैं रोजु सलीमा - टीवी।
घर के काम छुवैं नहिं एकौ।
राज रोग होइ गये अनेकौ।
अंग - अंग मा चर्बी चढ़िगै।
कोलेस्ट्रोल और बीपी बढ़िगै।
डायबिटीज से हँफनी छूटै।
घाव भरै नहिं कहूँ जो फूटै।
तनिको काम करें मन लाई।
तौ दिल की धड़कन बढ़ि जाई।
थायराइड बढ़िगै अति भारी।
निकरि आई सारी मक्कारी।
कुछ नारी ऐसी भी देखी।
बिना बीमारी मारैं सेखी।
सिर अरु पेट का दरद बतावैं।
बैद - डाक्टर ;पकरि न पावैं।
आवैं डाक्टर दियैं दवाई।
चुप्पे ;कतहूँ -दियैं बहाई।
घर - बाहर सब इनसे हारे।
लेकिन का करि सकत बिचारे।
लाखन कै सब दवा करावैं।
फिरिउ शांति से रहि ना पावैं।
नहिं पइसा ते प्रीति जतावैं।
निशिवासर तकनीक उठावैं।
करैं कुटिलता नारियाँ समझैं नहिं निज धेय।
वे सब सभ्य समाज में समझी जातीं हेय।32
हो भारत में पूज्य तुम करो ना ऐसे काम।
घर समाज और देस में होय घोर अपमान।33
घर का पइसा बाहर जाई।
बिन पइसा घर अति दुखदाई।
या से तुम्हैं रहेन समझाई।
करो नहीं ज्यादा कुटिलई।
अपने घर का तुम पहचानौ।
सास ननद पति देवर जानौ।
जानौ ससुर औ जेठ जेठानी।
जानौ देवर अरु देवरानी।
जानौ मातु - पिता सुत दारा।
जानौ आपन कुल परिवारा।
सेवा करो धरम अनुहारी।
सब मा हरदम रहौ पियारी।
या ते सबहिं कहौं समुझाई।
कुलटा ते सुलटा बनि जाई।
अपने घर के काज सम्हारौ।
मन की सबहिंकुटिलता मारो।
छोटी बचतें बड़ा सहारा।
भविष्य सुरक्षित करें हमारा।
कर्म लगन अनुसासन निष्ठा।
सदा बढ़ाते मान प्रतिष्ठा।
घर की अपने करो सफाई।
नहिं घर आवै रोग दवाई।
नारी के हित बहु लिखा निज मति के अनुसार।
अब कुछ नर हित में लिखूँ अपने तुच्छ बिचार।34
नारी से नर कम नहीं जानत है सब कोय।
नारी कुलटा है अगर नर भी कुलटा होय।35
चारि तरह की नारि बखाना।
अब नर के करबै गुणगाना।
चारि तरह के नर भी होते।
लायक कुछ नालायक होते।
लायक नर सम्मान हैं पाते।
बुद्धिमान सगुंणी कहलाते।
इनके चरित परम सुखदाई।
सबै बताय रहेन समुझाई।
सज्जन का यह लागी नीका।
दुर्गुणी लोग बतइहैं फीका।
फिरिउ कहब हम बारम्बारा।
सज्जन नमन करौं सतबारा।
अच्छे नर जग सोहत कैसे।
कीचड़ खिला कमल हो जैसे।
नहिं घमंड इनके मन माँहीं।
जिउ जुड़ात जस बरगद छाँहीं।
मातु - पिता का कहना मानैं।
छोट - बड़ा सबका पहिचानैं।
निज पतनी से प्रीति जतावैं।
दूजी को मन माँहिं न लावैं।
जो समाज हित होई कामा।
करिहैं वहै काम अविरामा।
पावैं सदा मान - सम्माना।
तुष्टा नर इनको सब जाना।
अब रुष्टा की बात बताऊँ।
मति अनुसार वहौ समझाऊँ।
घर मा जातै नाक सिक्वारैं।
पत्नी मा सब कमी निकारैं।
उनकै बात न मानैं एकौ।
लज्जित करते भाँति अनेकौ।
अपने घर के शेर कहाते।
बाहर हैं गीदड़ बन जाते।
घर के सुख-दुख करते भोगा।
ये नर होत सराहन जोगा।
पुष्टा नर होते अति तगड़े।
करते रहते दंगा झगड़े।
नारी घर की महरी जानैं।
तन सेहत को ज्यादा मानैं।
मारधाड़ मा रहत हैं आगे।
पुलिस से बचिके रहैं अभागे।
पुलिस के फंदे जब चढ़ जाते।
बिना सजा नहिं वापस आते।
अब दुष्टा की सुनो कहानी।
सबै जगह इनकै मनमानी।
इधर उधर बिचरत फिरैं ले मिजाज रंगीन।
इन पर सब नर थूकते समझत पसु से हीन।36
किंतु लगाते हैं बहुत अपने को श्रीमान।
लेकिन यह बेशर्म है जानत सकल जहान। 37
कुलटा नर अरु कुलटा नारी।
दोउ प्रताड़न के अधिकारी।
प्रेम सहित इनका समझाओ।
इन के सब गुण दोष बताओ।
जिनके काम ना लागैं नीका।
ऐसे नर जंजाल हैं जी का।
जग में अपनी हंसी कराते।
वे नर भी कुलटा कहलाते।
करते हैं ब्यभिचार अनेका।
सोचे युक्ति एक से एका।
इनके नीकि न कउनो ढर्रा।
पियत रोजु हैं देसी ठर्रा।
इंग्लिश भी कुछ पीते भाई।
कुछ गाँजा कै करैं पियाई।
गुटखा पुड़िया रोज हैं खाते।
फिर बीड़ी - सिगरेट मँगाते।
भाँग खाय कुछ आँखी काढ़ैं।
कुछ आपनि बढ़बूती झाड़ैं।
बिना नसा के चलि नहिं पावैं।
करैं नसा उत्पात मचावैं।
कुछ तो है अफीम के आदी।
बीवी बच्चन कै बरबादी।
तरह - तरह के नसा करते।
बच्चों के हित ध्यान न धरते।
लरिका बच्चा सुख ना पावत।
घर बाहर कोहराम मचावत।
गंदी - गंदी आदत सीखत।
सब मा हैं असुरक्षित दीखत।
बने मरमहित घूमते सब में है सिरमौर।
अंदर से कुछ और है बाहर से कुछ और।38
चोरी डाका मार में कबहुँ न होते बोर।
ऐसे नर होते सदा ब्यभिचारी अरु चोर।39
इनहिनि का सब कहैं मनचला।
इनसे नहिं है नारि का भला।
जो तनिको हैं मौका पावत।
करत कुकर्म विलंब न लावत।
इनकै करैं सबै जन निन्दा।
नारी का ई समुझि परिंदा।
दुराचार पहिले करि डारैं।
बादि मा वहिका जान ते मारैं।
इनका नारी बहुत देरातीं।
मेला - हाट कतहुँ नहिं जातीं।
अस बाढ़ी है इनके मस्ती।
करत नारि ते जब्बरदस्ती।
कबहुँ कबहुँ बनि जात दरिंदा।
देत जलाय नारि को जिन्दा।
इनको सजा मिलत अति भारी।
जो मनचले सतावत नारी।
ब्याझत घूरु बैल जस नाटा।
अति अभद्र नित पावैं चाटा।
कुछ कानून नये अब बनिहैं।
जइहैं जेल जो बात न मनिहैं।
पायी पुलिस टूरि तब देई।
चिल्लइहैं कुछ ध्यान न देई।
तब होई पछतावा भारी।
जबै पुलिस की सुनिहैं गारी।
होय सुधार जब इनमा जाई।
तबहिं देस कै होय भलाई।
सरम इन्है आती नहीं करैं तुच्छ सब कार्य।
अवगुण कभी समाज को होते नहिं स्वीकार्य।40
अपनी संस्कृति सभ्यता इन्हें न आती रास।
होते अति बेशर्म है यह अवगुण है खास।41
बिन अस्तित्व रहैं संसारा।
बहैं कीट जस जल की धारा।
जगह-जगह अपमान सहत हैं।
घूमि - घूमि परपंच करत हैं।
काम - धाम नहीं इनते सपरत।
चौराहन पर नित हैं बिचरत।
करत रोजु हैं सिटियाबाजी।
कहत लोग सब इनको पाजी।
निज इज्जति मरजाद गवाँवत।
फिरिउ चेतु नहिं मन मा लावत।
नितप्रति रहत उपद्रव जोते।
ऐसे नर नालायक होते।
इज्जति अरु मरजाद न जानैं।
अपनिनि बात रहत हैं ताने।
इनसे सदा रहाउ हुसियारा।
नहीं, बिगड़िहैं। काम तुम्हारा।
इनका साथ कबौ नहिं कीजै।
करहिं उपद्रव झापड़ दीजै।
ई समाज के दुस्मन पक्के।
लच्छन देखि रहत भौचक्के।
काम धाम सपरत नहीं दुस्करमन मा लीन।
ऐसे नर हैं जगत में एक टका के तीन।42
यद्यपि इसके हृदय मा भरे हैं दोस तमाम।
डरते सारे लोग हैं झुक कर करैं सलाम।43
द्याखउ गलत जो इनके धैना।
तुरत डपटि के ब्वालौ बैना।
तनिकौ नहीं तरस मन लाओ।
इनका तुरतै दूरि भगाओ।
जो इन संग ममता दिखलइहौ।
होय हानि पाछे पछितइहौ।
काम काज नहिं एकउ झाँकैं।
नित उठि नारि पराई ताकैं।
गाँव नगर अरु मेला - ठेला।
चलत जहाँ है इनका खेला।
ताकैं बिटिया बहिनि पराई।
बहु अभद्र इनकै कुटिलाई।
निज पत्नी का द्यात न ध्याना।
आपन चहत सकल कल्याना।
ऐसे नर जग में जस कागा।
इनके बुद्धि बिबेक न जागा।
इनके लाज सरम नहिं तनिका।
पुरुस नहीं पुरुसन सम गनिका।
इनसे सदा रहउ होसियारा।
मानो सब जन कहा हमारा।
जो मनिहौ नहिं हमरो बाता.
जस बोइहौ तस कटिहौ ताता।
अवगुन इनमा हैं बहुत सदगुण से हैं हीन।
इनसे नित दूरिनि रहौ मन नहिं करौ मलीन।44
ये हैं कलंक समाज के जीवन करते गर्क।
इनको कोऊ कुछ कहे पड़े न कोई फर्क।45
इनहुन काहि रहेन समुझाई।
मत ताकउ तुम नारि पराई।
जानउ बात असंभव भाई ।
छ्वाड़ौ मन आपनि कुटिलाई।
तंग वस्त्र ऐसे तन धारौ।
प्रेम से बैठो पलथी मारौ।
नाभी से नीचे कुछ लाई।
पैंट कमर से बाँधउ भाई।
नहिं नितंब पर देउ टिकाई।
पहनौ पैंट महा सुखदाई।
यहि ते न निकरी ज्यादा।
रहा हमार आपसे वादा।
गलती आपनि मन से मानौ।
हित अनहित आपन पहिचानौ।
ईश्वर का नहिं कबहूँ भूलो।
अवसर पा ऊँचाई छू लो।
जो समाज के अवगुन जानो।
करो नष्ट ऐसे प्रण ठानो।
अनुसासित सज्जन सुविचारी।
आदर पाने के अधिकारी।
करो बचत आगे करि ध्याना।
या ते होय सकल कल्याना।
जाय बैंक मा ख्वालौ खाता।
कुछ तो बचत करौ निज गाता।
राखउ प्रेम से लरिका बच्चा।
करउ प्रेम उनसे अति सच्चा।
राखउ मन ईश्वरहिं भरोसा।
सब प्रकार राखउ संतोसा।
बिन संतोष दुक्ख नर पावत।
आपन बुद्धि बिबेक नसावत।
जो तुम्हरे करमन मा होई।
होई वहै अउर नहिं होई।
सुन्दर सुन्दर कथा किहानी।
पढ़ौ लिखौ नहिं होई हानी।
सत्य अहिंसा के बल गाँधी।
लाये थे स्वराज की आँधी।
भगत सिंह आजाद सुभाषा।
बनो पटेल रचो इतिहासा।
देस क्राँतिह बिगुल बजाइनि।
अंगरेजन का मारि भगाइनि।
तुमहूँ ऐसे करो सुकरमा।
इज्जति पाऔ अपने धरमा।
बनो बिबेका नन्द सरीखे।
कबौ बचन नहिं ब्वालौ तीखे।
सुबयन बोलैं अटल बिहारी।
सुन्दर बात किहिन सुविचारी।
चाय बेंचि फुटपाथ पर मोदी हुए महान।
कर्म करो सुख से जियो बने आपकी सान।46
धीरूभाई ने किया बहुत अनोखा काम।
पाई पाई जोड़कर बन गए जग सरनाम।47
इन सबसे कुछ लइके सिच्छा।
करउ काम नहिं लाव अनिच्छा।
अब तक जो कुछ अवगुण कीन्हा।
दियो बिसारि भूल बस कीन्हा।
मागों छमा कान का पकड़ौ।
चरण कमल पर नकुना रगड़ौ।
अब न करब सब देउ बताई।
अब सब काज करब मनलाई।
निश्चय प्रेम करै सब कोई।
सत्य बचन मानौ खुस होई।
मति बदलौ अब कुलटा भाई।
सुन्दर कर्म करो सुखदाई।
पालौ नहीं तलब का चक्कर।
लेउ सदा अवगुण से टक्कर।
करो कृपा अविलंब सनेही।
रहउ पती निज पत्नी के ही।
स्वच्छता है सबका भूषण।
और गन्दगी विकट प्रदूषण।
रहौ गन्दगी से नित दूरहिं।
जीवन सुख भोगहिं भरपूरहिं।
स्वच्छ राखि आपन घर द्वारा।
सुख पइहैं तुम्हरे सुत- दारा।
स्वच्छता से सब सुख पइहैं।
कोऊ अस्पताल न हिं जइहैं।
यहि होइ बचत बड़ भारी।
नहिं आवति घर मा बीमारी।
कुलटा चरित जो हरदिन गइहौ।
नित प्रति मस्ती मौज मनइहौ।
तब कुलटा का लागी लाजा।
तब करिहैं सब सुन्दर काजा।
या ते सबहिं कहौं समुझाई।
कुलटा चरित पढ़ौ मन लाई।
मेहनत कड़ी सुरक्षा भारी।
अनुसासन सबसे गुणकारी।
गर्व करो नहिं करौ घमण्डा।
सज्जन बनो नहीं उदण्डा।
यक यक दाना धरो संजोई।
पइसा पइसा रुपिया होई।
कुछ बचाय के बैंक मा डारउ।
काज परै जब तबै निकारउ।
लरिका बच्चा सब सुख पइहैं।
सब तुम्हार जसगान सुनइहैं।
नाव तुम्हार आगेव सब लैई।
सब कोउ मन से आदर देई।
नहीं तौ मनई गारी देइहैं।
मन से नाम न कोऊ लेइहैं।
हिलमिल रहैं सबै नर- नारी।
तन - मन से सुन्दर सुविचारी।
तबहिनि पुरई आस हमारी।
तौ समझब कविता गुणकारी।
मन गदगद तब होई मोरा।
नहीं तौ समझब कागद कोरा।
नमो नमो कुलटा नमो विनय मोरि सुनि लेउ।
दम्भ छोंड़ि हिलमिल रहौ जगमा सुख भर देउ।49
निज विचार अर्पित करूँ सुन लो करुण पुकार।
हँसी खुसी अरु प्रेम से घर को लेउ सवाँरि।50
माध्यम कबिता है बनी कहता जग की बात।
नर-नारी हिलमिल रहैं जानैं निज औकात।51
करते हास्य पसंद हैं कबिता के सौकीन।
खाते हैं अति प्रेम से मीठा संग नमकीन।52
पढ़ करके नर नारि सब होवैं अक्किल मंद।
घर बाहर सब जगह ही रहैं सदा सानन्द।53
तब यह पुस्तक हो सफल मन आनन्दित होय।
जो मन में था लिख दिया हरि इच्छा सो होय।54
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