इन्द्रेश भदौरिया |
मृदुभाषी, विनम्र एवं प्रसन्नचित्त साहित्यकार इन्द्र बहादुर सिंह भदौरिया (उपनाम- इन्द्रेश भदौरिया) का जन्म 24 दिसंबर 1954 को ग्राम- मोहम्मद मऊ, पोस्ट- कठवारा, जिला- रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ। जन-सामान्य में प्रचलित शब्दों एवं मुहावरों को लोकधर्मी काव्य में परिणित करने की कला में निष्णात इन्द्रेश जी का अवधी साहित्य— 'बसि यहै मड़इया है हमारि' (2010), 'गजब कै अँधेरिया है' (2015), 'कुलटा चरित हास्य भण्डारा' (2015) एवं 'बुढ़उनूँ चुप्पी साधौ' (2017, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से दिसंबर 2018 में 'पण्डित वंशीधर शुक्ल पुरस्कार' से पुरस्कृत) समकालीन सरोकारों को बड़ी बेबाकी से मुखरित करता प्रतीत होता है। इस दृष्टि से अवधी भाषा-साहित्य के वर्तमान परिदृश्य में दया, प्रेम, करुणा, आस्था एवं अहिंसा का पावन सन्देश देने वाले भदौरिया जी का नाम आ. बलभद्र प्रसाद दीक्षित 'पढ़ीस', गुरु प्रसाद सिंह 'मृगेश', वंशीधर शुक्ल, रमई काका, द्वारिका प्रसाद मिश्र, बेकल उत्साही, पारस भ्रमर, विकल गोंडवी, आद्या प्रसाद 'उन्मत्त', जगदीश पीयूष आदि विशिष्ट रचनाकारों की सूची में बड़े सम्मान के साथ जोड़ा जा सकता है।
वैसे तो इन्द्रेश भदौरिया का नाम देश के श्रेष्ठ कुण्डलियाकारों की सूची में भी जोड़ा जा सकता है (ख्यात कुण्डलियाकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला पहले ही 'कुण्डलिया छंद के नये शिखर' संकलन में इंद्रेश जी की कुण्डलियों को स्थान देकर निश्चित ही सराहनीय कार्य कर चुके हैं)। जोड़ा जाना भी चाहिए। परन्तु, 'चाहिए' कहने भर से काम कहाँ चल पाता है? अक्सर देखने में आया है कि हमारे देश के गांव-जंवार में रहने वाले तमाम साहित्यकारों के रचनाकर्म से साहित्य समाज उस प्रकार से परिचित नहीं हो पाता, जिस प्रकार से होना चाहिए। इसीलिये ऐसे तमाम साहित्यकारों की सर्जना न तो साहित्य की मुख्य धारा में आ पाती है और न ही उस पर चर्चा-परिचर्चा, संकलन, शोध आदि ही हो पाते हैं। कई बार तो अच्छी पत्रिकाएँ भी उन्हें स्पेस नहीं दे पातीं। इसके पीछे कारण कई हो सकते हैं, होने भी चाहिए। परन्तु, बात तब तक नहीं बनेगी जब तक इन समस्याओं का निराकरण नहीं होता और अच्छे रचनाकारों को जानने-समझने का माहौल नहीं बनता। इसके लिए हम सब को सकारात्मक सोच तो रखनी ही होगी, संगठित होकर सहयोगात्मक कार्य भी करने पड़ेंगे।
आने वाले समय में क्या होगा, क्या नहीं, यह तो समय ही बतलायेगा, किन्तु यहाँ इस रचनाकार के आगामी कुण्डलिया संग्रह— 'कुण्डलियाँ सुमन' के लिए उसे बधाई तो दी ही जा सकती है।
नहीं भावना त्याग की, लज्जा भय चातुर्य।
उसका साथ न कीजिए, कितना हो माधुर्य।।
अच्छाई इंशान की, देख रहें खामोश।
किन्तु बुराई देखकर, रहे उडा़ते होश।।
पायल, बिछिया, चूडि़याँ, मेंहदी की भरमार।
नयन ताकते इतै उत, कब अइहैं भरतार।।
नयी कल्पना सोच नव, और नया उत्साह।
नव स्फूर्ति के संग मे, मिल जाती नव राह।।
राजनीति वैश्या बनी, रही नयन मटकाय।
पता नहीं कब कौन सा, फन्दे में फँसि जाय।।
फैला है चारों तरफ, कलयुग घनघोर।
चोरो को सारे नजर, आते हैं अब चोर।।
मंगलमय नववर्ष हो, छाये खुशी अपार।
सुख समृद्धि परिपूर्ण हो, पूरा घर-परिवार।।
शैल पुत्री माँ तुम्हे, विनवत बारम्बार।
दुख सारे हरती रहो, सुनिके मातु गुहार।।
जन जन के दुख को हरो, विघ्न विनाशिनि माय।
शम्भु सहित उर में वसो, हर पल होउ सहाय।।
मोदी जी ने कर दिया, इतना बड़ा कमाल।
सभी लोग खुशहाल हैं लेकिन कुछ बेहाल।।
मधुर बैन दानी हृदय धैर्य उचित पहचान।
होते गुण ईश्वर प्रदत्त मान चहे मत मान।।
तन-धन-सत्ता अरु समय, दे चाहे नहिं साथ।
पर स्वभाव सम्बन्ध अरु, समय रहें नित साथ।।
गुरू बृम्ह है विष्णु है, है देवों का देव।
परब्रह्म परमात्मा, नमन मेरा गुरुदेव।।
ईश भरोसा है जिसे, और परम विश्वास।
विचलित होति न कभी, दुख भी उसका दास।।
रिस्ते कितने हों बुरे, पर मत देना त्याग।
पीते गन्दा जल नहीं, किन्तु बुझाते आग।।
पल भर की मुस्कान से, बनता अच्छा चित्र।
अच्छी होगी जिन्दगी, हँसते रहिये मित्र।।
डूब गये वे तैरते, खुद पर जिन्हें गुमान।
किन्तु डूबकर तर गये, थे प्रभु मेहरबान।।
आप नहीं कमजोर हैं, है समय कमजोर।
पर निराश होयें नहीं, करें यत्न पुरजोर।।
जिसके दिल में प्रेम है, अरु स्नेह सम्मान।
बड़ा नहीं उससे कोई, हो कितना धनवान।।
हँसते देती छोंड़ है, रोते देती छोंड़।
पता नहीं किस डगर में, देय जिन्दगी छोंड़।।
गुरू से कोई न बड़ा, करें सदा सम्मान।
करे नहीं सम्मान जो,अवसरवादी जान।।
वही हाड़ वहि माँस है, वही रक्त अरु चाम।
कोई रावण बनत है, कोई बनता राम।।
जो भी कड़वा बोलते, डरें न उनसे मीत।
पर जो मीठा बोलते, रहें सदा भयभीत।।
जादूगर है बुरा वक्त, जब भी जाता आय।
शत्रु, मित्र के मुखों से, पर्दा देत हटाय।।
कथनी करनी एक सम, ऐसा मिला न कोय।
जो आगे रंगते रहे, पीछे देते धोय।।
चाहे सोना लो बना, सोकर देउ गुजार।
वक्त आपका मित्रवर, कर जैसे स्वीकार।।
खो जाते हैं मित्र यदि, भीड़ में लेते खोज।
लेकिन बदले हुए तो, रहते सदा अखोज।।
शोर मचाते खेल में, दर्शक ही चहुँओर।
लेकिन जो हैं खेलते, करें जरा न शोर।।
रिस्ते तो होते बहुत, कहने भर को तात।
जो निभ जाये वह सही, रहें कुशल जज्बात।।
जरा जरा सी बात पर, करते नित तकरार।
लगता मुझसे आप हैं, करते बेहद प्यार।।
महाकाल के फैसले, पर मुझको विश्वास।
सजा दे रहा है मुझे, कुछ तो होगा खास।।
अभिमानी होते वही, जिन्हें न होता ग्यान।
अपमानित सबको करें, चाहें खुद सम्मान।।
देखा मैंने सभी को, चलते अपनी चाल।
पर वक्त तकदीर का, रहता बड़ा कमाल।।
जाती भाग दरिद्रता, प्रभु दर्शन कर आप।
और भजन सत्कर्म से, मिट जाते हैं पाप।।
खाने में विष हो घुला, उसका मिले उपाय।
पर विष घुला हो कान में, तब होता निरुपाय।।
चले आप राहें मिली शूल बन गये फूल।
जादू नहिं गुरुदेव की, कृपा रही अनुकूल।।
तन निरोग माया भुवन, अरु सुविचारी नारि।
आग्याकारी पुत्र हो, ये घर के सुख चारि।।
दिल जीतें हम सभी का, हो यह मकसद साथ।
जीत सिकंदर जगत को, गया थ खाली हाथ।।
परिस्थितियाँ विपरीत जब, दे नहिं साथ प्रभाव।
काम करे तब व्यक्ति का, निज सम्बन्ध स्वभाव।।
क्रोध बड़ा शैतान है, हर लेता है ग्यान।
किन्तु धैर्य देता हमें, अच्छाई सम्मान।।
किन रिस्तों का जगत में, करूँ आज अभिमान।
होते चकनाचूर सब, पहुँचाकर शमशान।।
अहंकार तन पर नहीं, नहीं साँस इतबार।
पूँजी कर्म सुनेक की, है करती उद्धार।।
बहता नीर विचार है, मिले सुगंध पवित्र।
किन्तु मिले यदि गन्दगी, हो जाता अपवित्र।।
पहले हिम्मत कर करें, निज गलती स्वीकार।
फिर करके प्रयत्न को, सकते उसे सुधार।।
ईश्वर ने हर किसी को, हीरा दिया बनाय।
किन्तु चमकता है वही, जिसकी होय घिसाय।।
लेत परीक्षा है बहुत, अच्छों की भगवान।
किन्तु साथ छोड़े नहीं, करे वही कल्यान।।
सबसे अच्छी सादगी, किसी किसी में होय।
सुन्दरता कम ही मगर, महक चौगुनी होय।।
मानसिक स्थिति गर सही, जीवन में आनन्द।
जिनके घर धन है बहुत, उनकी खुशियाँ मन्द।।
अपने अच्छे नहिं लगें, लगें पराये मित्र।
गृह विनाश निश्चित अगर, ऐसे दिखें चरित्र।।
उम्मीदों पर जग टिका, नहीं छोंड़िए मीत।
बेहतर होगा आज से, कल फिर होगी जीत।।
दोस्त हजारों थे बने, जब पैसा था पास।
मिटे गरीबी में सभी, जो रिस्ते थे खास।।
समय हुआ अच्छा अगर, गल्ती लगे मजाक।
समय हुआ विपरीत तो, लोग समझते खाक।।
मुस्कराहट हँसी का, कोई नहीं है मोल।
जानबूझ तोड़ें नहीं, सब रिस्ते अनमोल।।
छोटी सी पहचान से, मिले बहुत आनन्द।
परछाई बन बड़ों की, मिले नहीं सुख चन्द।।
दिल टूटे दुख न मिले, टूटे अगर यकीन।
बड़े बड़े सुखवन्त भी, हो जाते गमगीन।।
जीवन उसका है सुखद, है जिसका मन मस्त।
पर मन जिसका मस्त है, उसके पास समस्त।।
कितना बड़ा हो आदमी, गुणों से मिलती कद्र।
गुण से बनते भद्र हैं, अवगुण करें अभद्र।।
समझो वेदों को नहीं, नहीं है कोई बात।
समझ वफा ईमान को समझ लीजिए तात।।
माना सागर में भरा, पानी बहुत अपार।
लेकिन नदियों से लिया, उसने सभी उधार।।
लोग करें तारीफ या, कमियाँ देंय निकाल।
संतुष्टी मन को मिले, यदि अच्छा तुक-ताल।।
करलें आप प्रयत्न बहु, दे दे मारें माथ।
काया माया छाँव तो, रहें न हरदम साथ।।
आयी फिर से देश में है मोदी सरकार।
कमल खिल गया देश खुशी दिखें नर-नार।।
अच्छाई इन्शान की देख रहें खामोश।
किन्तु बुराई देखकर रहे उडा़ते होश।।
पायल बिछिया चूडि़याँ मेंहदी की भरमार।
नयन ताकते इतै उत कब अइहैं भरतार।।
नयी कल्पना सोच नव और नया उत्साह।
नव स्फूर्ति के संग मे मिल जाती नव राह।।
राजनीति वैश्या बनी रही नयन मटकाय।
पता नहीं कब कौन सा फन्दे में फँसि जाय।।
फैला है चारों तरफ ये कलयुग घनघोर।
चोरो को सारे नजर आते हैं अब चोर।।
मंगलमय नववर्ष हो छाये खुशी अपार।
सुख समृद्धि परिपूर्ण हो पूरा घर परिवार।।
शैल पुत्री माँ तुम्हे, विनवत बारम्बार।
दुख सारे हरती रहो, सुनिके मातु गुहार।।
जन जन की रक्षा करो,विघ्न विनाशिनि माय।
शम्भु सहित उर में वसो, हर पल होउ सहाय।।
मोदी जी ने कर दिया, इतना बड़ा कमाल।
सभी लोग खुशहाल हैं लेकिन कुछ बेहाल।।
मधुर बैन, दानी हृदय, धैर्य, उचित पहचान।
होते गुण ईश्वर प्रदत्त मान चहे मत मान।।
धैर्य कभी मत छोड़िए, दुख कितना भी होय।
धैर्य अगर टूटा सखे , हँसी हँसारो होय।।
दिन भी भाता सभी को अच्छी लगती रात।
फिर सूख दुख के फेर में खोयें क्यों जज्बात।।
लोभी लंपट स्वार्थी होते बहुत महान।
लेकिन इनसे दूर रह खुश रहता इंसान।।
घृणा मोह लालच जलन,द्वेष व चुगली छोड़।
जीवन में कुछ इस तरह,लायें सुन्दर मोड़।।
नहीं दिखाई पड़ रहे कहाँ छिपे चितचोर।
दर्शन की है कामना मोहन नन्द किशोर।।
जीवन है न भविष्य में जीवन नहीं अतीत।
जो सम्मुख है आपके जीवन वही है मीत।।
देती दुख है मूर्खता यौवन दुखद महान।
सबसे दुखदायी लगे लेना पर अहसान।।
मधुरी बानी बोलकर करे कपट रहि संग।
बहुत बड़ा वह शत्रु है करे रंग में भंग।।
अवगुण सन्मुख बोलता समझो उसको मीत।
तनिक बुरा मत मानिये करता सच्ची प्रीत।।
दुखिया सब संसार है सुखिया दिखे न कोय।
यदि मन में सन्तोष हो दुख काहे को होय।।
रिमझिम वर्षा संग में आया सावन मास।
सावन का शुभ आगमन भरदे मन उल्लास।।
योग करें या न करें करते रहिये भोग।
करना कभी न भूलिये आपस में सहयोग।।
प्रथम गुरू माता - पिता दूजा गुरू समाज।
तीजा शिक्षक जानिए जिनपे हमको नाज।।
सबका मैं आदर करूँ प्रेषित मन उद्गार।
गुरूपूर्णिमा दिवस पर वन्दन कोटिक बार।।
पत्निक दोष व धूर्त ठगी, मान और अपमान।
बुद्धिमान जन न कहत जानत सकल जहान।।
भाई बर तरु पूजिए मिले सुकून अथाह।
पक्षी को है फल मिले हर प्राणी को छाँह।।
धर्म सुसंस्कृति वार हो फिर भी रहता मौन।
ऐसे नर को जगत में जिन्दा कहेगा कौन।।
नहीं भावना त्याग की लज्जा भय चातुर्य।
उसका साथ न कीजिए कितना हो माधुर्य।।
आयी फिर से देश में है मोदी सरकार।
कमल खिल गया देश खुशी दिखें नर-नार।।
अच्छाई इंशान की देख रहें खामोश।
किन्तु बुराई देखकर रहे उडा़ते होश।।
पायल बिछिया चूडि़याँ मेंहदी की भरमार।
नयन ताकते इतै उत कब अइहैं भरतार।।
नयी कल्पना सोच नव और नया उत्साह।
नव स्फूर्ति के संग मे मिल जाती नव राह।।
राजनीति वैश्या बनी रही नयन मटकाय।
पता नहीं कब कौन सा फन्दे में फँसि जाय।।
फैला है चारों तरफ ये कलयुग घनघोर ।
चोरो को सारे नजर आते हैं अब चोर।।
मंगलमय नववर्ष हो छाये खुशी अपार।
सुख समृद्धि परिपूर्ण हो पूरा घर परिवार।।
शैल पुत्री माँ तुम्हे, विनवत बारम्बार।
दुख सारे हरती रहो, सुनिके मातु गुहार।।
जन जनके दुखको हरो, विघ्न विनाशिनि माय।
शम्भु सहित उर में वसो, हर पल होउ सहाय।।
मोदी जी ने कर दिया, इतना बड़ा कमाल।
सभी लोग खुशहाल हैं लेकिन कुछ बेहाल।।
मधुर बैन दानी हृदय धैर्य उचित पहचान।
होते गुण ईश्वर प्रदत्त मान चहे मत मान।।
मधुर बैन दानी हृदय धैर्य उचित पहचान।
होते गुण ईश्वर प्रदत्त मान चहे मत मान।।
मूर्ति देख भगवान की, रख चरणों में माथ।
कहते उनको हैं सभी, हरि अनाथ के नाथ।।
कभी चैन की रोटियाँ, खाता नहीं गरीब।
एक नहीं सौ आफतें, रहती खड़ी करीब।।
अच्छा तेरा रूप है, अच्छा तेरा नाम।
मेरे मन मंदिर बसो, हे राधा के श्याम।।
स्वप्न न देखें भविष्य का, सोचें नहीं अतीत।
वर्तमान को देखकर, करें कर्म हे मीत।।
घृणा घृणा करते रहो, घृणा न कम हो मीत।
प्रेम तत्व अपनाइए, घृणा लीजिए जीत।।
दोस्त यदि निष्ठाहीन है, जिसका बुरा अतीत।
पशुओं से ज्यादा रहो, तब उससे भयभीत।।
थोड़े में संतुष्ट जो, सबसे बड़ा अमीर।
लेकर जाये न कोई, कोई भी जागीर।।
पता नहीं है मूर्ख कब, हो जाये बर्बाद।
किन्तु मिटाने में लगा, जो भी हैं आबाद।।
बनी बनायी न मिले, प्रशन्नता बाजार।
इसको पाते लोग हैं, कर्मों के अनुसार।।
काशी वासी आप हे, शंकर भोलेनाथ।
दीन हीन रक्षा करें, बन अनाथ के नाथ।।
स्वयं न आती सफलता, चलकर अपने द्वार।
लाते द्वारा कर्म के, असफलता को मार।।
कठिन समय में जिन्दगी, जभी नचाती नाच।
ढोल बजाते आपने, बात कहूँ मैं साँच।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: