वर्तमान समय में गीतकवियों की रचनाओं का प्रकाशन तो खूब हो रहा है, किन्तु उनकी रचनाधर्मिता पर केंद्रित पुस्तकों का सृजन या संपादन करने वाले कलमकार बहुत कम हैं। इन्हीं अल्पसंख्यक कलमकारों में से एक— डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र, जोकि शासकीय नर्मदा महाविद्यालय, होशंगाबाद (म.प्र.) में विभागाध्यक्ष (हिन्दी) के पद पर कार्यरत हैं, के सम्पादकत्व में एक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसका शीर्षक है— "समकालीन गीत और वीरेन्द्र आस्तिक।" 364 पृष्ठों के इस ग्रन्थ में डॉ मिश्र ने गीत-नवगीत के इतिहास तथा उसके विमर्शात्मक मौजूदा मुद्दों के बहाने ख्यात कवि, आलोचक एवं संपादक वीरेन्द्र आस्तिक की गीत-यात्रा की गहन पड़ताल की है। अपनी इस पड़ताल में सम्पदकीय के माध्यम से 'गीत-साधना की त्रिगुणात्मिका सृष्टि' का सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत करते हुए डॉ मिश्र ने आस्तिक जी के अवदान को 'सृजन, सम्पादन एवं समीक्षण' की दृष्टि से रेखांकित तो किया ही है, उनकी इस त्रिआयामी सर्जना को मुख्य आधार बनाते हुए इस ग्रन्थ को करीने से खण्डबद्ध भी किया है।
विगत पाँच दशकों से सक्रिय वीरेन्द्र आस्तिक एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने अपनी साधना, संयम, स्वाध्याय, समर्पण और सेवा से हिंदी गीत और आलोचना को साहित्य-प्रेमियों के बीच जीवंत बनाये रखा है। स्वाभाव से फक्क्ड़, मोह-माया से परे, यश-कीर्ति की तृष्णा से मुक्त आस्तिक जी का रचना-संसार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों, संकलनों आदि में पसरा पड़ा है, जिसे सम्पादक ने अपनी कुशल एवं अनुभवी संपादन-कला द्वारा छः खण्डों— 'व्यक्तित्व-कृतित्व' (आस्तिक जी के जीवन और साहित्य की दशा-दिशा को प्रदर्शित करते आलेख), 'विचार-विमर्श' (आस्तिक जी के बहाने गीत अस्मिता पर केंद्रित आलेख), 'मूल्यांकन' (आस्तिक जी द्वारा संपादित कृतियों की मीमांसा ), 'समीक्षण' (आस्तिक जी द्वारा रचित गीत-नवगीत कृतियों की समीक्षाएँ), 'साक्षात्कार' (डॉ जयशंकर शुक्ल से वीरेंद्र आस्तिक की बातचीत) एवं 'काव्य-वीथियाँ' (आस्तिक जी की काव्य-रचनाएँ), में समाहित कर इस ग्रन्थ को आकर्षक कलेवर प्रदान किया है। संपादक का मानना भी है— "उनके (वीरेन्द्र आस्तिक) कृतित्व में परंपरा एवं आधुनिकता की युक्तियुक्त संहति है, अनुभूति की संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की तलस्पर्शी भंगिमा उनकी रचनाशीलता का वैशिष्ट्य है। इसलिए उनके प्रदेय की यत्किंचित चर्चा भी साहित्य-समीक्षालोक में सुलभ है, किन्तु उनके अवदान पर कोई समेकित-प्रस्तुति अभी तक नहीं हुई है। यह संपादित ग्रन्थ इसी अभाव की पूर्ति का प्रयत्न है" (22)।
वीरेन्द्र आस्तिक पर केंद्रित इस रचना-समग्र को समृद्ध करने के लिए सम्पादक ने निम्नलिखित नामवर साहित्यकारों एवं आलोचकों के अमूल्य शब्दों को इसमें संकलित किया है— 'व्यक्तित्व-कृतित्व खण्ड' में : डॉ विमल, डॉ मधुसूदन साहा, मधुकर अष्ठाना; 'विचार-विमर्श खण्ड' में : डॉ सुरेश गौतम, डॉ संतोष कुमार तिवारी, डॉ प्रेम बहादुर सिंह, डॉ अन्जना दुबे, डॉ सरिता आदि; 'मूल्यांकन खण्ड' में: डॉ वेद प्रकाश अमिताभ, श्री रंग, डॉ वीरेन्द्र सिंह, दिवाकर वर्मा, डॉ सूर्य प्रसाद शुक्ल आदि; 'समीक्षण खण्ड' में : डॉ कामिनी, डॉ अवनीश सिंह चौहान, डॉ रणजीत पटेल, आचार्य रामदेव लाल ‘विभोर’, डॉ शांति सुमन, डॉ साधना बलवटे, डॉ कृष्णकुमार श्रीवास्तव, डॉ प्रभा दीक्षित, डॉ श्याम नारायण पाण्डेय, डॉ रवीन्द्र कुमार आदि; 'साक्षात्कार खण्ड' में : डॉ जयशंकर शुक्ल; तथा ‘काव्य-वीथियाँ खण्ड' में वीरेन्द्र आस्तिक के समकालीन गीत, गज़ल, हाइकु एवं दोहे समायोजित किए गए हैं। साथ ही अंतिम खण्ड से पहले ‘पत्रों के गवाक्ष से’ में वीरेंद्र आस्तिक के द्वारा नामचीन विद्वानों, यथा— राजेंद्र प्रसाद सिंह, वीरेंद्र मिश्र, रवींद्र भ्रमर, सत्यनारायण, सिद्धिनाथ मिश्र, मधुर शास्त्री, चन्द्रसेन विराट, रामदरश मिश्र, रामेश्वर शुक्ल अंचल, लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक', सेवक वात्सायन, सुरेश गौतम, राम अधीर, विष्णु विराट, अश्वघोष, जीवन सिंह, ओमप्रकाश सिंह आदि से हुए संवादों को पत्र-रूप में संग्रहीत भी किया गया है, जिससे लेखक के व्यक्तिगत संबंधों की सुनहरी परतें भी खुलती हैं।
यहाँ वीरेन्द्र आस्तिक की रचनाधर्मिता को थोड़ा और जानने-समझने के लिए कतिपय विद्वानों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ को भी देख लेना समीचीन लगता है। इस सन्दर्भ में डॉ विमल का कथन है— ‘‘मेरी आलोचना दृष्टि में आस्तिक जी महान कलाविद हैं। ललित कलाओं के न केवल निष्णात पंडित, अपितु कुशल सर्जक भी। यही कारण है कि उनकी कविताओं में स्थापत्य, मूर्ति, चित्र और संगीत, यानी कविता की चारों भगिनी ललितकलाओं की सहभागिता और सहगामिता विद्यमान है" (37); डॉ अंजना दुबे मानती हैं— "वीरेन्द्र आस्तिक संवेदन से मानवता का अर्थ निकालने वाले गीतकार हैं" (97); डॉ कामिनी का कहना है— "आस्तिकजी यथार्थधर्मी रचनाकार हैं। उनकी यह प्रतिबद्धता और शुचिता ही गीत का सौंदर्यबोध है" (215); डॉ प्रेम बहादुर सिंह का अभिमत है— ‘‘महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आस्तिक को किसी एक परिधि में बाँधना कठिन है। उनकी सामग्री जन विराट है" (96)। इस प्रकार पूरे ग्रन्थ में साहित्यिक वैचारिकता के साथ कई तथ्यपूर्ण निष्कर्ष मौजूद हैं। यह ग्रन्थ पाठकीय दृष्टि से पठनीय एवं संग्रहणीय तो है ही, इससे सुधी शोधार्थीगण भी लाभान्वित होंगे— ऐसा मेरा विश्वास है।
बहुत- बहुत स्वागत इस महत्वपूर्ण कृति का। इस हेतु आदरणीय वीरेंद्र आस्तिक जी एवं आदरणीय कृष्ण गोपाल मिश्र जी को मेरी हार्दिक बधाई। निश्चित रूप से ये बहुत उल्लेखनीय और आवश्यक कार्य हुआ है। आ कृष्ण गोपाल मिश्र जी की समीक्षकीय प्रतिभा से हम सभी परिचित हैं, इससे पूर्व उन्होंने नवगीतकार विनोद निगम पर आलोचनात्मक पुस्तक लिखी है। मिश्र जी का यह कार्य बहुत प्रशंसनीय और स्वागत योग्य है।
जवाब देंहटाएंयह पुस्तक प्रकाशन से मँगा लिया है और पठन जारी है। संग्रहणीय और पठनीय। अशेष बधाई।
जवाब देंहटाएंशिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
मेरठ