समीक्षित कृति : नवगीत : संवादों के सारांश
लेखक : अवनीश सिंह चौहान
प्रकाशन वर्ष : 2023
पृष्ठ : 152, मूल्य : रु. 350/-
ISBN : 978-93-91984-32-8
प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बरेली (उ.प्र.)
प्रकाशन वर्ष : 2023
पृष्ठ : 152, मूल्य : रु. 350/-
ISBN : 978-93-91984-32-8
प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बरेली (उ.प्र.)
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‘टुकड़ा कागज़ का’, 'स्वामी विवेकानन्द: सिलेक्ट स्पीचेज', ’विलियम शेक्सपीयर: किंग लियर’ आदि कई महत्वपूर्ण ग्रंथों के रचयिता डॉ अवनीश सिंह चौहान हिंदी व अंग्रेज़ी में समान दक्षता के कारण काफी चर्चित हैं। आप हिंदी में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों के निर्माण, संपादन व अनुवाद-कार्य से जुड़े हुए हैं। मार्च 2021 में 'वीणा' पत्रिका में प्रकाशित आपका नवगीत कहता है— "बड़े चाव से बतियाता था/ अपना गांव-समाज/ छोड़ दिया है चैपालों ने/ मिलना-जुलना आज।"
नवगीतों में अपनी दक्षता, रुचि व जागरूकता के फलस्वरूप देश के कई चर्चित व लोकप्रिय नवगीतकारों से आपका गहरा संपर्क है। इस मेल-जोल व विचार-विमर्श को आप साक्षात्कार के रूप में संचयित करते हुए पाठकों के पास ’नवगीत : संवादों के सारांश’ शीर्षक से साक्षात्कार-संग्रह लेकर आए। यह पुस्तक हिंदी की दो विधाओं का समागम प्रस्तुत करती है। एक तरफ कल-कल निर्झरिणी की भांति नवगीतों की विमल काव्यमय धारा है, तो दूसरी ओर प्रवीण रसज्ञ नवगीतकारों से बातचीत— इस वैचारिक आदान-प्रदान से निर्मित साक्षात्कार की रचना-भूमि पाठकों को अभिभूत कर देती है। संग्रह में सत्यनारायण, मधुकर अष्ठाना, गुलाब सिंह, कुमार रवींद्र, मधुसूदन साहा, मयंक श्रीवास्तव, शांति सुमन, राम सेंगर, नचिकेता, वीरेंद्र आस्तिक, रामनारायण रमण, बुद्धिनाथ मिश्र, रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ तथा ओमप्रकाश सिंह — कुल 14 नवगीतकारों से अवनीश जी खुलकर संवाद करते हैं, जिससे विचारों का एक पुख्ता पुल नवगीतकार और साक्षात्कारकर्ता के बीच निर्मित होता दिखता है।
अवनीश जी के प्रश्न नवगीतकार के व्यक्तिगत जीवन, रुचि, नवगीत के क्षेत्र में पदार्पण तथा प्रभाव-ग्रहण को पाठकों के समक्ष उभारते हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं—
1. मार्क्सवादी आलोचना एवं परंपरावादी आलोचना के संदर्भ में नवगीत के प्रतिमान के बारे में आपकी क्या अवधारणा है?
2. नवगीत को साधने में लय-गेयता, टेक व तुकांत आदि के प्रयोग किस प्रकार से किए जाते हैं?
3. नवगीतकारों के ऊपर अक्सर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं कि उन्हें अपनी निजता बहुत प्यारी लगती है। निजी तौर पर एवं व्यापक काव्य-संदर्भ में आप निजता को किस तरह देखते हैं?
आपके प्रश्नों में नवगीतों के माध्यम से पाठक समाज पर पड़ते वांछित प्रभाव को जानने की उत्सुकता है। इन प्रश्नों में नवगीतों के शिल्प-कौशल व रचनाधर्मिता को पहचानने का आग्रह निहित है। आपके प्रश्नों की बानगी तथा नवगीतकारों के द्वारा दिए गए उत्तर पठक को बांधे रखने में सक्षम हैं। इन प्रश्नों के माध्यम से हिंदी नवगीत की धारा के विकास व उसमें आए विभिन्न पड़ावों को जानने में मदद मिलती है। परिणामस्वरूप यह साक्षात्कार संग्रह हिंदी नवगीत के इतिहास को समझने में निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होगा। बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के अंतर्गत बीआईयू कॉलेज ऑफ ह्यूमनिटीज एण्ड जर्नलिज़्म में आचार्य व प्राचार्य के पद पर सुशोभित अवनीश जी जिस प्रकार कर्मक्षेत्र में गुरु दायित्व का वहन करते हैं उसी प्रकार समीक्ष्य साक्षात्कार संग्रह के माध्यम से वे हिंदी नवगीत विधा की दिशा व दशा को प्रकाशित करने का महत दायित्व का भी निर्वहन करते हैं।
आलोच्य संग्रह में कुछ नवगीत लेखन में वरिष्ठ व कुछ आयु में वरिष्ठ (किन्तु नवगीत लेखन में देर से पदार्पण करने वाले नवगीतकार) शामिल किए गए हैं, फलतः दोनों प्रकार के नवगीतकारों की 'एप्रोच' को जाना-समझा जा सकता है। प्रत्येक नवगीतकार से अवनीश जी ने लगभग एक दर्जन प्रश्न किए हैं जिससे उनके समग्र व्यक्तित्व को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके। अवनीश जी के शब्दों में— "भाषा बदलकर प्रश्नों को प्रस्तुत कर या प्रश्नों की पुनरावृत्ति कर नवगीतकारों से संवाद करने की विद्यमान परिपाटी से अलग हटकर इस पुस्तक में बहुआयामी एवं प्रासंगिक प्रश्नोत्तरों को संकलित किया गया है, ताकि विधागत बिंदुओं पर रोचक एवं रचनात्मक संवाद हो सके।"
अवनीश जी की पुस्तक नवगीतकारों की स्मृतियों में उभरे अनुभवसम्पन्न, ज्ञान-विदग्ध व यादगार प्रसंगों के कारण अधिक रुचिकर बन गई है। एक नवगीतकार के मानस को पढ़े बिना उसके द्वारा कलमबद्ध नवगीतों के मर्म तक पहुंचना संभव नहीं होता। नवगीतकारों ने समाज में रहकर, उससे जुड़कर अपने रचना-मर्म को सफल बनाया है। समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तथा सरोकार को अवनीश जी ने अपने प्रश्नों के माध्यम से उभारा है। हिंदी नवगीत को कई आलोचकों के आक्षेपों का सामना करना पड़ा है। उसके शिल्प व प्रभाव को लेकर कई कटूक्तियां उछाली गईं। नवगीतकारों की सृजन-यात्रा के कमोबेश अधिकांश पड़ाव इन साक्षात्कारों में प्रकट हुए हैं। अवनीश जी के प्रश्नों तथा नवगीतकारों के उत्तर के माध्यम से पाठक नवगीतों पर केंद्रित नवगीत संग्रहों व पत्र-पत्रिकाओं से अवगत होते हैं। समकालीन नवगीतकारों के चिंतन में जगह बनने वाले विषयों की स्पष्ट झलक उभारने में इन साक्षात्कारों ने दारूण भूमिका निभाई है।
इस पुस्तक में कई बार जान-बूझकर कुछ उलझे हुए विवादास्पद प्रश्न भी प्रस्तुत किये गए हैं जिनसे नवगीत विधा में सोच की टकराहट, अहम् की भिड़ंत, आक्षेपों की आंधी के दुष्परिणामों का आकलन किया जा सके। साक्षात्कार से पूर्व दिए गए प्रत्येक नवगीतकार के संक्षिप्त परिचय में उनकी कृतियों का लेखा-जोखा शामिल है। प्रत्येक साक्षात्कार का शीर्षक उस साक्षात्कार की अंतर्वस्तु व मर्म की सम्प्रेषणीयता में सफल व सार्थक प्रमाणित हुआ है। निष्कर्षतः कह सकते हैं कि नवगीत के समर्पित शब्द-साधकों से किये गए ये रोचक, ज्ञानवर्धक संवाद निश्चित तौर पर पाठकों के लिए लाभप्रद साबित होंगे।
चर्चित लेखिका डॉ रेशमी पांडा मुखर्जी वर्तमान में गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज, कोलकाता में एसोसिएट प्रोफेसर (हिंदी) पद पर कार्यरत हैं।
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Navgeet Samvadon Ke Saransh by Abnish Singh Chauhan. Reviewed by Dr Reshmi Panda Mukherji
आज अंग्रेजी और हिन्दी के ख्यात साहित्यकार डाॅ अवनीश सिंह चौहान का जन्मदिन है। कभी उनके जन्मदिन पर चार पंक्तियाँ कही थी। फेसबुक का आभार और आप के अवलोकनार्थ......
जवाब देंहटाएंडा.अवनीश सिंह चौहान के जन्मदिन पर-
जीवन तो अनवरत बहस है
जले दिया-सा दूर निकष है
भोर स्वप्न है खग कहें, उठो
चार जून है जन्म दिवस है
- वीरेंद्र आस्तिक