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सोमवार, 13 जनवरी 2025

'नवगीत अर्द्धशतक' (खण्ड-एक) : एक महत्वपूर्ण समवेत संकलन — अवनीश सिंह चौहान

कृति : 'नवगीत अर्द्धशतक' (खण्ड-एक)
सम्पादक : शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'’
प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन, 
ई-28, लाजपत नगर, साहिबाबाद, गाज़ियाबाद-201005
प्रकाशन वर्ष : 2024, पृष्ठ : 360, मूल्य : रु. 600/-
ISBN: 978-93-93103-67-3

'नवगीत अर्द्धशतक' (खण्ड-एक) हिंदी नवगीत विधा का एक उल्लेखनीय संकलन है, जिसे प्रबुद्ध संपादक व नवगीतकार शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' ने परिश्रमपूर्वक तैयार किया है। इस संकलन को ख्यात कवि व आलोचक वीरेंद्र आस्तिक ने आशीर्वचन प्रदान किया है, जबकि जाने-माने साहित्यकार डॉ गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर' व डॉ भुवनेश्वर दुबे ने अपनी सम्मतियाँ दी हैं। अपनी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित भूमिका में वीरेंद्र आस्तिक कहते हैं— 'गीतांगिनी' नवगीत का पहला समवेत संकलन था। वहाँ हम पहली बार नवगीत-जन्म और उसके तात्विक विवेचन के इतिहास से परिचित होते हैं। आज नवगीत की समृद्धता, गुणग्राहकता तथा इसकी साहित्य की मुख्य धारा में उपस्थित जो दिखाई दे रही है, उसके पीछे सैकड़ों समवेत संकलनों की भूमिका स्पष्ट है। एक अनवरत यात्रा समवेत संकलनों की जारी है, जिसका अगला पड़ाव है सद्यः प्रकाशित ग्रंथ— 'नवगीत अर्द्धशतक भाग एक' (पृ. 7)।.... इस मांगलिक बेला में हम 'नवगीत अर्द्धशतक भाग एक' के प्रकाशनोत्सव की शुभकामना अर्पित करते हैं। सभी को बधाई देते हैं" (पृ. 9)।

'नवगीत कुटुंब' व्हाट्सएप्प ग्रुप (स्थापना : 1 फरवरी 2023) के संस्थापक व संचालक शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' ने इस संकलन में अपनी बात 'नवगीत और नवगीत के नूपुर' शीर्षक से रखी है। इस विस्तृत प्रस्तावना में वे अपनी बात 'नवगीत कुटुंब' की स्थापना से प्रारम्भ करते हैं। तदुपरांत वे जहाँ गीत और नवगीत में अंतर बताते हुए नवगीत के उद्भव व विकास को सलीके से रेखांकित करते हैं, वहीं इस संकलन के प्रकाशन की प्रक्रिया तथा इसके प्रयोजन पर प्रकाश डालते हुए संपादन में मिले स्नेह व सहयोग के लिए वे अपने सहयात्रियों का आभार व्यक्त भी करते हैं। वे बड़ी सहजता से लिखते हैं— "नवगीत को केवल गेयता, लयता की सीमा में बंद नहीं रखा जा सकता। नवगीत की सीमा को पठनीयता की सीमा से भी जोड़ना होगा और तब नवगीत को ठीक से जाना-पहचाना जा सकता है" (पृ. 37)। नवगीत के मूल तत्व पर अपना विचार रखते हुए वे आगे कहते हैं— "यदि देखा जाय तो मानव त्रासदी, संस्कृति बोध और प्रकृति सौंदर्य की समावेशी दृष्टि है नवगीत। अर्थात नवगीत का मूल-तत्व सम्पूर्ण वस्तु-जगत के मानवीकरण में है। दूसरे, नवगीत में नवीन बोध नवगीत का मूल तत्व है" (पृ. 39)।  

इस महत्वपूर्ण संकलन के प्रथम भाग— 'नवगीत की समृद्ध धरोहर' में 8 कवि (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, शंभुनाथ सिंह, वीरेन्द्र मिश्र, शिवबहादुर सिंह भदौरिया, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, उमाकांत मालवीय, रवीन्द्र भ्रमर व दिनेश सिंह, पृ.: 57-76), द्वितीय भाग— 'नवगीत के वर्तमान वरिष्ठ रचनाशील' में 14 साहित्यकार (माहेश्वर तिवारी, गुलाब सिंह, मधुसूदन साहा, शांति सुमन, मुकुट सक्सेना, मधुकर अष्ठाना, मयंक श्रीवास्तव, राधेश्याम शुक्ल, रामसेंगर, नचिकेता, वीरेंद्र आस्तिक, बुद्धिनाथ मिश्र, रामसनेहीलाल शर्मा 'यायावर' व ओमप्रकाश सिंह, पृ.: 79-169), तृतीय भाग— 'नवगीत के वर्तमान सांप्रतिक रचनाशील' में 14 रचनाकार (सुभाष वसिष्ठ, निर्मल शुक्ल, रमेशदत्त गौतम, शिवानन्द सिंह 'सहयोगी', बृजनाथ श्रीवास्तव, विजय बागरी 'विजय', जय चक्रवर्ती, अजय पाठक, जगदीश व्योम, यश मालवीय, रामकिशोर दाहिया, राजा अवस्थी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' व अवनीश सिंह चौहान, पृ.: 173-260) एवं चतुर्थ भाग— 'नवगीत की वर्तमान उजली आहटें' में 14 कलमकार (राम निहोर तिवारी, शिवजी श्रीवास्तव, विजय सिंह, रणजीत पटेल, संजय शुक्ल, कल्पना मनोरमा, अक्षय पाण्डेय, अनामिका सिंह 'अना', रविशंकर मिश्र 'रवि', योगेन्द्र प्रताप मौर्य, गरिमा सक्सेना, धर्मेन्द्र कुमार मौर्य, राहुल शिवाय व शुभम् श्रीवास्तव ओम, पृ.: 263-360) संकलित किये गए हैं। इस संकलन के प्रकाशन पर सहयोगी जी कहते हैं— "यह संकलन 'नवगीत कुटुंब' और नवगीत का स्मारक संकलन होना चाहिए, ऐसा विश्वास है। चयन प्रक्रिया एक  समिति  द्वारा एकदम निष्पक्ष भाव से की गई है। फिर भी कुछ मित्रों को चयन प्रक्रियात्मक आपत्ति हो सकती है, वे क्षमा कर देंगे।"

इस पुस्तक में समकालीन नवगीत कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं को संकलित किया गया है। इसमें संकलित नवगीत-कविताएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को संवेदनशीलता और सजीवता के साथ अभिव्यक्त करती हैं। इनमें सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाएँ, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक चेतना के स्वर प्रमुखता से उभरते हैं। साथ ही ये कविताएँ पाठकों को विचारशील बनाती हैं और भावनात्मक रूप से जोड़ती हैं।

संपादक शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' ने नवगीतों के चयन में उत्कृष्ट साहित्यिक दृष्टिकोण का परिचय दिया है। इसमें संकलित रचनाएँ अपने आप में एक नई सोच और दृष्टि प्रदान करती है। इनकी भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और लयात्मक है, जो पाठकों को अंत तक बाँध कर रखती है।

कुलमिलाकर, 'नवगीत अर्द्धशतक' (खण्ड-एक) नवगीत प्रेमियों और साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी पुस्तक है। इस उपयोगी पुस्तक के यशस्वी सम्पादक सहयोगी जी एवं इसमें संकलित सभी कवियों को हार्दिक बधाई एवं साधुवाद।


प्रस्तुति
:
 
'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले वृंदावनवासी साहित्यकार डॉ अवनीश सिंह चौहान बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।


Book Review by Abnish Singh Chauhan

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